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॥ ॐ अहं नमः ॥ कलिकाल-सर्वज्ञ, श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य विरचित
योग शास्त्र (हिन्दी विवेचन)
(प्रथम प्रकाश) नमो दुर्वार रागादि वैरिवार निवारिणे ।
अहंते योगिनाथाय, महावीराय तायिने ॥१॥ . अर्थ - दुष्कर रूप से दूर करने योग्य राग-द्वष-मोह आदि शत्रुओं के समूह का निवारण करने वाले, अर्हत भगवान्, योगियों के स्वामी, सांसारिक जीवों के रक्षक तथा विश्व के सर्वश्रेष्ठ वीर (शूरवीर) श्री महावीर भगवान् को मैं (इस ग्रन्थ की निविघ्न समाप्ति के लिए) नमस्कार करता हूं। .. विवेचन- शास्त्रकार ने इस श्लोक में भगवान् महावीर प्रभु के नाम के साथ पांच विशेषणों का युक्ति तथा बुद्धि से परिपूर्ण संयोजन किया है । इस से ध्वनित होता है, कि शास्त्रकार को कोई निर्गण या अल्पगण 'ईश्वर', नमस्कारार्थ अभिप्रेत नहीं, परन्तु वे नमस्कार्य परमात्मा को अनेक गुणों-विशेषणों से युक्त होने पर ही बुद्धिगम्य मानते हैं ।
__ मैं भगवान् महावीर के इन पांच विशेषणों का क्रमश: विवेचन करूंगा
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