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________________ २४२] अचौर्य नाओं का निरूपण किया है, जो क्रमशः निम्न रूप से हैं १. वसति याचना-साधु गृहस्थ के प्रसाद के लिए बारंबार वसति की याचना करे । इस से गृहस्थ प्रसन्न रहता है तथा उस की भावना बनी रहती है। पांच व्यक्तियों से वसति की याचना की जाती है । १. इन्द्र से(दक्षिण लोकार्ध का स्वामी, सौधर्मेन्द्र तथा उत्तरी अर्धलोक का का स्वामी, ईशानेन्द्र है ।) २. चक्रवर्ती से। ३. मांडलिक राजा से (किसी भी शासक से)। ४. गृह के अधिपति से । ५. उसी घर में ठहरे हए साध से (वह साध अपने ही सम्प्रदाय का हो तो भी उस से ठहरने की आज्ञा माँगना अनिवार्य है)। ___ साधु बिना याचना किए तृण का भी स्पर्श नहीं करते तो किसी की भूमि में बिना पूछे रहने का तो अर्थ ही क्या है ? साधु माँग कर वसति ले तो गृहस्थ का मन प्रमुदित रहता है । अयाचित भूमि में वास करने से अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। ____ अयाचित भूमि के ग्रहण से गृहपति क्लेश कर सकता है । क्लेश से साधु की साधना का ह्रास होगा तथा गृहस्थ अधर्म प्राप्ति करेगा। साधु वसति की याचना गृहपति से ही करे । किसी पड़ोसी के कहने से घर में प्रवेश न करे। यहां तक कि गोचर चर्या के लिए उपस्थित साधु 'धर्म लाभ' कह कर तथा उस का प्रत्युत्तर "पधारो" आदि सुन कर ही गृह में प्रवेश करे । गृहपति की पुत्री (परिणीत हो तो) की आज्ञा से भी घर में न रहे, क्योंकि वह पूत्री घर की अधिपति नहीं होती। इस प्रकार घर में किसी अन्य सदस्य से भी पूछ कर तभी वसति ग्रहण करे, जब इस वात का विश्वास हो कि गृह का वास्तविक मालिक आकर दुर्भाव प्रदर्शित नहीं करेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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