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________________ २३२१ अचौर्य सिखाती हैं, वहां चोरी भी सिखाती हैं। फिल्मों में यथा रूप ध देख कर बालक तथा युवकों के मन में भी तादृश कुछ करने की लालसा जागृत होती है तथा कभी-कभी वह साकार भी हो जाती है। एक फिल्म में सभी प्रबन्धों के बावजूद जगह पर पहरेदारों के रक्षण में पड़ी हीरों की पेटी ले जाता है । ऐसा दृश्य देख कर बच्चे चोर नहीं बनेंगे ? asों की चोरी की आदत देख कर बालक भी तत्सदृश व्यवहार सीख जाता है । परिस्थिति तब और भी अधिक भयानक हो जाती है । जब चोरी करके स्कूल से पैन पेंसिल या स्लेट लाने वाले बच्चे के मां-बाप कुछ भी नहीं कहते हैं। एक बालक विद्यालय से एक पेन चुरा कर लाया । मां ने उस पेन को संभाल कर रख लिया तथा कहा, कि "मुझे चार आने का लाभ हुआ ।" मां से उस को प्रोत्साहन मिल चुका था । मां नहीं जानती थी कि वह अपने बेटे के जीवन को बर्बाद करने के लिए सामान पैदा कर रही है। मां बच्चे के इस कर्म को इस दृष्टि से देख रही थी कि मेरा बेटा चुस्त है जो दस वर्ष की आयु से धन जमा करता है तथा मां को यह बताता है कि चोरी करने से माल मिलता है तथा किसी को पता भी नहीं चलता है । तदनन्तर वह अन्य छोटी बड़ी वस्तुएं भी चुरा-चुरा कर लाता रहा । अन्तम युवावस्था में चोरी के आरोप में पकड़ा गया । उसे मृत्युदण्ड देने की आज्ञा दी गई। मां को इस बात का पता चला तो वह रो पड़ी । अब रोने का अर्थ क्या ? बेटे को चोर तूने स्वयं बनाया है। युवक से उस की अन्तिम इच्छा की पृच्छा की गई। बेटे ने मां से मिलने की इच्छा व्यक्त की । वह मां के प्रति द्वेषाग्नि से दग्ध ही रहा था। मां को बुलाया गया । उस ने मां का एक अन्तिम चुम्बन लेने के लिए मां को आगे आने के लिए बुलाया । Jain Education International एक चोर गुप्त को उठा कर बनेंगे तो क्या For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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