________________
२१८]
सत्य Not only with our lips,
but also with our lives. __ अर्थात्-सत्य का सम्बन्ध होठों से नहीं जीवन से होना चाहिए । गृहस्थ के सत्य व्रत में कुछ छूट मिल जाती है। गृहस्थ को अपने व्यापारादि में कुछ झूठ तो बोलना ही पड़ता है परन्तु बड़े झूठ का श्रावक के लिए निषेध है।
यदि गृहस्थ को बहुत बड़े लाभ के लिए छोटा झूठ बोलना : पड़े तो वह क्षंतव्य हो सकता है।
यदि गृहस्थ मार्ग में चलते हुए यह देखे कि एक गाय उधर से निकली है तथा कुछ ही क्षणों के पश्चात् वहां से कोई कसाई निकले तथा उस से पूछे कि आप ने यहाँ से गाय को जाते हुए देखा है ? तो वह गृहस्थ सत्य कहने से पहले अपने अहिंसा धर्म को समझे।
हो सके तो उस कसाई को बातों में लगा दे ताकि गाय और भी दूर जा सके। वह दिशा न बताए कि किस दिशा में गाय गई है। वह विपरीत दिशा बता दे, जिस से कि गाय की रक्षा हो सके । जहां असत्य बोलना पापकारी न होगा। क्योंकि उसके पीछे सद्हेतु है।
यदि किसी साधु के सामने ऐसा प्रसंग उपस्थित हो जाए तो वह जहां तक हो सके मौन रहने का प्रयत्न करे।
परन्तु यदि वह कसाई बहुत ही आग्रह करे तो साधु मरणात कष्ट भी सहन कर ले परन्तु वहां सत्य या असत्य तो नहीं बोले । क्योंकि उस अवसर पर सत्य कहने से जीव हिंसा होती हैं तथा असत्य कहने से व्रत में दोष लगता है।
यह सत्य व्रत, करना कराना अनुमोदना इस प्रकार तीन प्रकार का होता है ? साधु सत्य का पालन स्वयं भी करे, दूसरों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org