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________________ योग शास्त्र [२१७ एक असत्य ने एक व्यक्ति का नाश कर दिया। महाभारत में युद्ध से पूर्व जो प्रतिज्ञा, शर्ते रखी गई थी--उन का भी पालन नहीं हुआ । अर्थात् पूर्व में कहे गए वचन असत्य ही प्रमाणित हुए। यद्ध में नियम बनाया गया था कि कोई भी योद्धा किसी निःशस्त्र पर आक्रमण नहीं करेगा। परन्तु कर्ण जब अपने रथ गर्त से निकाल रहा था, तब निःशस्त्र कर्ण को बाणों से बिद्ध कर दिया गया। वचन का पालन न हो सका। __ श्री कृष्ण ने यह प्रतिज्ञा की थी कि वै अर्जुन के सारथि बन कर रहेंगे लेकिन एक प्रसंग पर श्री कृष्ण ने भी रथ का पहिया शस्त्र के रूप में उठाया था। इस प्रकार प्रतिज्ञा वचन वहां टूट गया। महाभारत में नियम बनाया गया था कि स्त्री या नपुंसक पर आक्रमण नहीं किया जाएगा। परन्तु जब भीष्म बाणों की वर्षा कर रहे थे तब नपुंसक शिखंडी को बीच में खड़ा करके उस के पीछे सुरक्षित रह कर अर्जन ने बाण चलाए। जबकि नियम के अनुसार भीष्म शिखंडी पर बाण नहीं चला सकते थे। तब अर्जुन की प्रतिज्ञा क्या अखंड रही ।। नियम के अनुसार एक योद्धा ही एक योद्धा के साथ युद्ध कर सकता था। परन्तु चक्रव्यह में प्रविष्ट अभिमन्य को कौरवों ने मिल कर मार डाला। यह कौरवों का क्या प्रतिज्ञा पालन था ? इस प्रकार प्रतिज्ञा भ्रष्ट होने से ये महारथी अपने कहे हुए वचन को क्या सत्य कर सके ? इस प्रकार असत्य के पक्षधर बन गए। अतएव एक अंग्रेजी के लेखक को कहना पढ़ा कि "God is truth and truth is God" सत्य ही ईश्वर है तथा ईश्वर हो सत्य है । सत्य का ईश्वर की तरह सन्मान करना ही चाहिए। यह सन्मान मात्र शाब्दिक न हो, आचरण में भी हो एक writer ने कहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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