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योग शास्त्र
[२०६ एक बार एक राजसभा में एक ठग आया । उस ने तरहतरह की बातें करके राजा का मन मोह लिया। वह अंत में कहने लगा कि महाराज ! हम आप के लिए एक परिधान (Dress) लाए हैं । उस परिधान की यह विशेषता हैं कि, सब को दिखेगा परन्तु पहनने वाले को नहीं दिखेगा। परिधान इतना सुन्दर है कि देखने वाले आप के रूप की प्रशंसा करेंगे। राजा ने उस बहुमूल्य परिधान को पहन लेने की ठानी।
उस परिधान का मूल्य ले लेने के पश्चात् शभ मुहूर्त में उन ठगों ने लाखों की पर्षद के सम्मुख राजा के कपड़े एक-एक करके उतारने प्रारम्भ किये तथा साथ-साथ में वह अदृश्य परिधान पहनाना भी प्रारम्भ किया । ज्यं-ज्यं राजा के वस्त्र उतरते गये, राजा जनता को निर्वस्त्र दिखता चला गया । राजा भी स्वयं को इसी दशा में देख रहा था । परन्तु उन ठगों की तो यह शर्त ही थी कि वस्त्र राजा को नहीं दिखेंगे। राजा स्वयं को निर्वस्त्र देखकर भी उस नई पोशाक से सन्तुष्ट ही था। जब पोशाक ही नहीं थी, उस के दिखने का अर्थ हो क्या था ? यह तो जनता को उल्ल बना कर उन्हें ठगने का एक तरीका था।
समस्त जनता आश्चर्य चकित थी कि राजा इस प्रकार से अपने कपड़े क्यों उतरवा रहा है ? पर्षद का एक-एक बालक भी किंकर्तव्य विमूढ़ हो चुका था कि वह राजा को कैसे समझाए कि आप के साथ धोखा हो रहा है। __ अन्ततः नवीन परिधान पहना कर वे राजा से बोले, "महाराज आप इस वेश में बहुत सुन्दर दृष्टिगत हो रहे हैं । क्या आप का रूप सजा है इस परिधान से ?" किसी व्यक्ति की साहस न हो सका कि वह उन ठगों को चपत लगा कर उन को शिक्षा दे। जब राजा ही निर्लज था तो लोगों को लज्जा करने की क्या बात थी।
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