________________
योग शास्त्र
[१८३
को अभयदान ( जीवन दान ) दे दीजिए। इस की फांसी वापस ले लीजिए | उसे जीवनदान का वरदान दीजिए । राजा ने रानी की बात को समझा एवं माना भी । उस ने चोर को मुक्त करने का आदेश दिया। चोर को अभयदान दिया गया । रानी ने चोर को जीवन दान की बात कही तो चोर प्रसन्न वदन हो गया और रानी ने उसे भोजन खिलाया । यद्यपि उस भोजन में मिष्टान्न नहीं था तथापि उस चोर को वह भोजन मिष्टान्न से भी अधिक स्वादिष्ट प्रतीत हुआ । उस ने प्रेम से वह भोजन खाया तथा मन में प्रसन्न होकर सोचने लगा कि कितना स्वादिष्ट भोजन है । रोटी, साग और मारवाड़ का पापड़ यह तीन वस्तुओं का भोजन चोर को मिष्टान्न भोजन से भी अधिक प्रिय लगा । वह विचार करने लगा, 'तीन-तीन दिनों तक मैंनें जो भोजन किया है उस में वह मजा नहीं आया जो मुझे इस भोजन में आ रहा है । क्या यह भोजन श्रेष्ठ था ? किस कारण से यह भोजन अच्छा लगता था ।
चोर को जीवन का दान मिल गया था । इसलिये उसे यह भोजन सब से अधिक प्रिय लगा । जो व्यक्ति अभयदान देता हैं, उस दान के समान विश्व में कोई भी दान नहीं है ।
आज हमारे भारतवासी गायों को बचाने की बातें करते हैं और मनुष्यों की रक्षा का कितना प्रयत्न कर रहे हैं कई लोग जैन लोगों की निंदा करते हैं, जैन लोग कैसे हैं ?
पानी पीओ छानकर, मनष्य मारो जानकर ।
वर्तमान में अनेक दुष्कृत्यों एवं समाज विरोधी कार्यों में जैन लोगों का नाम बदनाम हो रहा है - यह लज्जा तथा खेद का विषय है । यह हमारे जैन धर्म की आज दशा | अहिंसा के कारण जैन धर्म तो विश्वधर्म बनने के योग्य अधम लोगों के नीच कार्यों के कारण जैन धर्म का अपमान हो रहा है । कितना कर्मों का बन्धन हो रहा है ।
है जब कि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org