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अहिंसा
जब दूसरी रानी ने उस की सेवा के लिए बहुत सुन्दर. स्वादिष्ट भोजन बनवाया तथा उसे खिलाया साथ में दक्षिणा भी दी तथा उसे नृत्य आदि भी दिखाया । परन्तु चोर का मन नहीं लगता । उस के मन में यही विचार चलते हैं 'क्या खाऊं ये सब मिष्टान्न और क्या देखूं ये नृत्य अरे ! चार पांच दिन के बाद तो फांसी होने वाली है ।' अतः उसे ये माल - पानी खाने में मजा नहीं आया ।
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भोजन करने में मजा नहीं आएगा ।
जब तीसरी रानी ने चोर की सेवा के लिए चोर को बढ़िया भोजन खिलाया और न केवल नृत्य अपितु साथ में संगीत इत्यादि भी आयोजित किया । चोर को प्रसन्न करने की यह नवीन विधि थी । परन्तु फिर भी चोर का मन नहीं लगा । क्योंकि सामने उसे मौत ही दृष्टिगत हो रही थी । फांसी में दो चार दिन की ही देर थी । कैसे मन लगता भोजन, नृत्य, संगीत में ? मरने से दुनियां बहुत डरती है । लोगों में मृत्यु का भय बहुत हैं । एक छोटा सा कीड़ा नाली में दुर्गंध में रहता है, वह भी मरना नहीं चाहता । और स्वर्ग लोक का इन्द्र तथा पृथ्वी लोक का चक्रवर्ती भी मरना नहीं चाहता । अतः जो मृत्यु है वह सब को अप्रिय है ।
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सव्वे जीवावि इच्छंति, जीविउ न मरिज्जिउ ॥ इसका तात्पर्य है कि सब प्राणी जीना चाहते हैं मरना कोई नहीं चाहता ।
और जब चौथी रानी रूपवती को चोर की सेवा करने का अवसर मिला तो उसने क्या किया ? भोजन इत्यादि के पूर्व वह राजा के पास जाती है और उनको निवेदन करती है । हे राजन् ! मैं इसकी सेवा तो करूंगी, परन्तु मेरी एक इच्छा है । मुझे प्रतीत होता है कि इस चोर के मन पश्चाताप हैं, इसे मैं स्वयं उपदेश देकर सुधार लूंगी। आप इस बारे में निश्चित रहिए तथा चोर
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