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अहिंसा है। अपनी आंखों के द्वारा सामने या नीचे की तरफ साढे तीन हाथ आगे दृष्टिपात करके देख कर चलो। दृष्टि के द्वारा स्थान को देखने के बाद ही कदम रखो। इस का नाम है ईर्या संमिति ।
महाभारत के अनुसार : दृष्टि पूतं न्यसेत्पादं, वस्त्रपूतं पिवेत् जलं । अर्थात् दष्टि से देख कर पैर रखना चाहिए तथा वस्त्र से छान कर जल पीना चाहिए। आज आप अंधाधुन्ध ही चलते हैं। भागते दौड़ते गाड़ी में जाते हैं । आप सारा दिन सामने देख कर चलते हैं क्या ? यदि नीं तो आप कितना बड़ा पाप का बन्धन करते हैं। साधओं के लिए जो पद-विहार भगवान महावीर स्वामी ने बताया है । इस का यही कारण है कि साधु का जीवन निष्पाप हो जाए । अहिंसा का पालन नहीं होता इसी लिए ईर्यासमिति में दोष लगता है । पाद विहार के द्वारा अहिंसा का पालन करने वाला हिंसा का दोष अपने जीवन में नहीं लगाता। __एषणा समिति :-एषणा समिति का अर्थ है कि हम जो आहार इत्यादि लेते हैं उसे देख कर लें। पिंडशुद्धि से लें । आहार भोजन इत्यादि लेने में हमें ध्यान रखना चाहिए। उस का नाम है एषणा समिति ।
आदान भंडमत्त निक्षेपणा समिति :-आप कोई वस्तु लेते हैं कोई वस्तु देते हैं । कोई वस्तु कहीं पर रखते हैं। कोई वस्तु उठाते हैं। इस प्रक्रिया में विवेक का परिचय दो । सोच कर ही पदार्थों का आदान प्रदान करें। विवेक पूर्ण रीति से तो अहिंसा है, अन्यथा हिंसा के पाप का बन्धन है ।
आहार ग्रहण :-सचित्त की हिंसा का त्याग । साधु जब भी आहार लें चारों तरफ देख कर ले कि कोई भाई या बहन किसी सचित्त वस्तु को स्पर्श तो नहीं कर रहा है ? यदि स्पर्श हो रहा हो तो आहार ग्रहण में दोष लगता है । आहार लेने की विधि सम्यक् होनी चाहिए। अगर वह सम्यग् नहीं होगी तो हिंसा का दोष लगेगा।
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