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ज्ञान तथा क्रिया युद्धआरम्भ कर दिया। तलवार, गदा, बन्दूक तथा अन्य हथियारों के द्वारा वो युद्ध कर रहा हैं। मन में कलुषित विचार हैं कि शत्रु को मार डालं, समाप्त कर दं । एक मुनि और मन के इतने कलुषित विचार ? ___इन विचारों के द्वारा वह सातवों नरक के योग्य कर्मो का संचय करता है यह तो उस का पुण्योदय था कि इन कर्मों का निकाचित बन्ध नहीं हुआ। यदि उन का निकाचित बंध हो जाता तो वे निश्चित ही सातवीं नरक में चले जाते । जो निकाचित बंध नहीं हुआ वह उन का भाग्योदय और पुण्योदय था।
__ जब मन ही मन लड़ते हए सारे शस्त्र समाप्त हो गये तो उन के मन में विचार आता है “अरे ! मेरा मुकुट तो अभी शेष है।' राजाओं के पास मुकुट होता है वह भी कभी काम आ जाता है। उन्होंने सोचा, 'मुकुट के द्वारा ही मैं उस शत्रु को मार दूंगा। ऐसे विचार के साथ हाथ सिर के ऊपर करके जब मुकुट उतारने लगते हैं तो पाते हैं "अरे ! यह क्या हो गया ? मेरे मस्तक पर मकूट तो क्या ? केशराशि भी नहीं है।" क्रम से विचार आता है-'यह मुकुट तो में स्वयं उतार कर आया हं । अरे ! मैं तो साधु हं । साधु बन जाने के पश्चात् मेरे मन में ये कैसे विचार ? अहो ! ऐसे हिंसा के विचार क्यों आ गये? ऐसे विचार एक साधु के मन में ? ऐसे विचार मुझे कहाँ शोभते हैं ? मैंने बहुत गलत काम किया। मैंने बहुत बुरा विचार किया। वे मन में दुःखी होते हैं।
समवसरण में पहुंच कर श्रेणिक महाराजा ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा कि वह साधु (प्रसन्न चन्द्र) यदि अभी ध्यानावस्था में मर जाए तो कहाँ जाएगा? भगवान् महावीर ने उत्तर दिया कि वह अशुभ विचारों के द्वारा सातवीं नरक में जाएगा। क्षणांतर में श्रेणिक ने पुनः पूछा तो महावीर ने उत्तर
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