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आवश्यकता तब अनुभूत हुई, जब 'गुरु वल्लभ तथा गुरु आत्म के नाम से चल रही अधिकांश संस्थाओं का कार्य मुझे सन्तोष जनक न लगा । उनकी कार्यविधि भी मुझे रुचिकर प्रतीत न हुई । कुछ संस्थाए नाम मात्र को ही जीवित हैं । कुछ संस्थाएं मात्र 'बैलेंस' के ही चक्कर में रहती हैं। कार्य के नाम पर वे 'तूष्णींभव' का पाठ सिखाती हैं । कुछ संस्थाएं वृद्ध हो रही हैं, व उन्हें पुनः सशक्त करने की आवश्यकता है ।
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लुधियाना व अम्बाला की संस्थाएं, बम्बई का महावीर विद्यालय, पूना का विजय वल्लभ विद्यालय, राजस्थान के विद्यालय, बड़ौदा का विजय वल्लभ हस्पताल आदि कुछ ही संस्थाएं ऐसी हैं जिन्होंने कार्यक्षेत्र में अपनी धाक जमाई है, अन्यथा 'गुरु वल्लभ के मिशन की किसे चिंता है ?
आचार्य देव श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज इस दिशा में सदैव कार्यरत रहे हैं। सभी संस्थाओं को अनुदान दिलाना, पुनर्जीवित करना तथा योजनाओं को साकार करना, यह उन के उत्कट कार्य हैं ।
पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से 'श्री विजय वल्लभ मिशन' भी अपने साहित्य सेवा, सामाजिक एकता, शिक्षा प्रचार, साधर्मिक उत्थान, श्रमण संघ वैयावच्च तथा साधु साध्वी शिक्षा आदि कार्यों में सफल होगा, ऐसा विश्वास है ।
विद्वान् बनना कठिन है । जब कि वक्ता तथा लेखक बनना उस से भी कठिन है । मेरा यह ग्रंथ रचना का कार्य आद्य प्रयास है, अभी प्रारम्भिक चरण में है । अतः इस कार्य में त्रुटियों का होना स्वाभाविक है । कोई त्रुटि हो तो पाठक सूचित करें ।
पुस्तक प्रकाशन में जिन महानुभावों का सक्रिय योगदान रहा है, मैं उन के प्रति आभार व्यक्त करता हूं । आषाढ़, शुदि १४ भीवंडी
मुनि यशोभद्र विजय
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