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________________ योग शास्त्र [१५३ होता है । शेष व्यक्ति तो श्रद्धा तथा चारित्र से ही स्वकल्याण साधते हैं । ज्ञान बल से सेवा, त्याग, शम, तप तथा सदाचार का अधिक होता है । भाषत्ष मुनि की मुक्ति शम के बल से हुई । कूरगडू ऋषि की मुक्ति समता से हुई । दृढ़ प्रहारी की मुक्ति प्रायश्चित्त से हुई । बाहुबली को सेवा से ही चक्रवर्ती से अधिक बलं प्राप्त हुआ । सनत्कुमार त्याग से स्वर्ग में गए । मुनि नंदिषेण सेवा से देवलोक के अधिकारी बने । जिस का विशेष ज्ञानावरणीय कर्म का क्षमोपशम न हो, वह उत्कट चारित्र से स्वर्ग या मोक्ष को प्राप्त क्यों नहीं कर सकता ? 1 'आत्मा' यह एक शब्द है, परन्तु इस एक शब्द का ज्ञान प्राप्त करना सरल है ।' 'जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ' जो एक आत्मा को जान लेता है, वह सब कुछ जान लेता है। ज्ञान प्राप्त करना कठिन काम है | ज्ञान के लिए बुद्धि का बल चाहिए, एकाग्रता चाहिए, दृढ़ संकल्प चाहिए, साहस चाहिए तथा सतत अभ्यास तथा रुचि होनी चाहिए । जब कि सामान्य साधक के के पास ये सब गुण नहीं होते । अतः वह सेवा आदि क्रियाओं से भी स्वर्ग अथवा मोक्ष को प्राप्त कर सकता है । २६. Knowledge is power, knowledge is light, knowledge is a best virtue. ज्ञान एक शक्ति है, ज्ञान एक प्रकाश है तथा ज्ञान सब से बड़ा गुण है । तर्क - परन्तु ज्ञान के प्रकाश में चले बिना लक्ष्य की प्राप्ति कैसे होगी ? ज्ञान की शक्ति का सदुपयोग किए बिना इस शक्ति का क्या लाभ ? ज्ञान का गुण होने के पश्चात् यदि दोषों के निराकरण का प्रयत्न न हो, तो ज्ञान का महान गुण भी किस काम का ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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