SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग शास्त्र [१४७ जो जीवों को जानता है तथा अजीवों को भी जानता है वह पाप कर्म का बन्ध नहीं करता। तर्क-क्या जीवों तथा अजीवों को जानने मात्र से ही पाप कर्मों का बन्ध रुक जाएगा या उन जीवों की रक्षा करने से ? ३. सोच्चा, जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणई पावगं । उभयपि जाणए, सोच्चा, जं सेयं तं समायरे ॥ सुनने से ही कल्याण (श्रेय) तथा पाप का ज्ञान होता है । सुन कर जो मार्ग श्रेयस्कारी हो, उस पर चलना चाहिए । तर्क - श्रवण से सही मार्गों का ज्ञान होता है । परन्तु यदि कोई व्यक्ति सुनता ही जाये तो, एक मात्र ज्ञान से कल्याण कैसे होगा ? चलने की क्रिया तो करनी ही पड़ेगी। ४. ऋते ज्ञानान् न मुक्तिः ___ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती। तर्क- परन्तु अकेले ज्ञान से भी तो मुक्ति संभव नहीं । सम्यक् मार्ग पर चलना भी तो पड़ेगा। ५. विद्या विहीनः पशुः ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः । ज्ञान के बिना नर पशु के समान है। तर्क :-जो ज्ञानी होकर भी तप आदि नहीं करता । रात्रि भोजन, अभक्ष्यादि सेवन करता है, विवेकी नहीं बनता, वह क्या रात्रि भोजी पशु के समान नहीं होता ? ६. नाणं नरस्ससारं। ज्ञान मनुष्य का सार है। तर्क :-यदि ज्ञान ही मनुष्य का सार है तो ज्ञान से अति'रिक्त सांसारिक या धार्मिक क्रियाएं क्यों की जाती हैं ? ७. धन, कण, कंचन, राजसुख, सब ही सुलभ कर जान। दुलर्भ है संसार में, एक यथार्थ ज्ञान ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy