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ज्ञान तथा क्रिया
ज्ञान तथा चारित्र, ज्ञान तथा क्रिया इन में मुख्य कौन है ? . ज्ञान है या क्रिया रूप चारित्र ? यह एक टेढ़ा प्रश्न है । क्योंकि ज्ञान को मुख्य कहने से ज्ञानी क्रियाहीन हो सकता है । तथा क्रिया को मुख्य कहने से क्रियावादी ज्ञान से पराङमख हो सकता है। शास्त्रों में दोनों (ज्ञान तथा क्रिया) के पक्ष में अनेक अभिमत मिलते हैं। सर्व प्रथम हम इन मतों पर एक विहंगावलोकन कर लें तथा इन के विरोध पक्ष में क्या-क्या तर्क उपस्थित होते हैं-उन तर्कों का भी अध्ययन कर लें।
ज्ञान या क्रिया के पच्चासों तर्कों से आप पायेंगे कि हर एक शास्त्रवाक्य वस्तुतः स्वयं में बिल्कुल अधूरा है । १. “पढमं नाणं तओ दया", · (दशव०) ____ अर्थात्-प्रथम ज्ञान है, बाद में दया।
तर्क :-जीवादि तत्वों के ज्ञान से उन जीव आदि की रक्षा का प्रयत्न हो सकता है। परन्तु दया (करुणा) का भान विकसित होने पर ही 'आत्मवत् सर्व भूतेषु' तथा 'वसुधैव कुटुंबकम्' का ज्ञान विकसित होता है। अतः ज्ञान ही पहले नहीं, दया भी पहले हो सकती है। २ जे जीवे वि वियाणेई, अजीवे वि वियाणेइ।
जीवाजीवे वियाणंतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ (दशवै०)
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