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योग शास्त्र
१४१ ____यदि स्वयं चारित्र नहीं ले सकते तो चारित्र ग्रहण करने वालों की सहायता करनी चाहिए । वह भी न हो तो अनुमोदना भी की जा सकती है । अनुमोदना करने से भी अंतराय कर्मों का क्षय होता है, वीर्योल्लास प्रकट होता है एवं चारित्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होता है।
मात्र ज्ञान कई बार निरर्थक प्रमाणित होता है । ज्ञान होने के पश्चात् तदनुरूप आचरण करने से ही कार्य की सिद्धि होती
एक घर में रात्रि के समय एक चोर ने प्रवेश किया। पत्नी जागृत थी। पति कुछ नींद में था। पत्नी ने तुरन्त पति से कहा, "देखिए ! चोर ने घर में प्रवेश किया है।" पति ने उत्तर दिया, "मैं जानता हूं, कुछ समय पश्चात् चोर ने कमरे में प्रवेश किया। फिर पत्नी ने कहा, "चोर का कमरे में प्रवेश हो चुका है अब वह ताला तोड़ सकता है" पति ने कहा, "मैं जानता हूं।" जब चोर ने ताला तोड़ कर सामान एकत्र करना प्रारम्भ किया तो पत्नी फिर चिल्लाई । परन्तु पति का वही उत्तर था। चोर ने सामान को बांध लिया। पत्नी ने कहा, "पतिदेव ! चोर ने सामान बांध लिया है, अब तो उठो।" परन्तु पति का एक-ही उत्तर था कि मैं जानता हैं । चोर सामान सिर पर उठा कर चलने लगा। फिर पत्नी ने पति से कहा, "अब तो शीघ्रता करो, चोर को पकड़ लो।" पति बोला “मैं जानता हूं, अभी उठता हूं।" तब तक चोर नौ दो ग्यारह हो गया। परन्तु पति अब भी कह रहा था, कि "मैं जानता हूं।" पत्नी बोली, “धूल पड़े तुम्हारे ऐसे जानने में।" वर्तमान में ऐसे लोगों का आधिक्य हैं, कि जो जानने में ही संतुष्ट रहते हैं । जो कुछ जानते हैं, उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न नहीं करते।
सदाचार का पालन या चारित्र की साधना एक अलौकिक
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