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________________ सम्यक् चारित्र बुद्धिमान् नहीं । उस मार्ग का विचार कम होगा, तो शनैः-शनैः वह विचार समाप्त भी हो जाएगा। व्रतधारी का व्यवहार भी शद्ध हो जाता हैं। व्रत की शुद्ध आराधना, समाज भय अथवा सामूहिक जीवन के कारण उस का व्यवहार कलुषित नहीं रहता। व्रत को ग्रहण करने से अनेक लाभ होते हैं । मनोविज्ञान यही सिखाता है, कि मानव स्व-पर व्यवहार को दष्टि में रखे । उस से उसे यह अमूल्य ज्ञान होगा कि विद्या, कषाय तथा शांति आदि के लिए मैं किस धरातल पर खड़ा हूं तथा अन्य व्यक्ति कितना आगे बढ़ चुके हैं ? सारी साइकोलाजी व्यवहार का अध्ययन करती है। सदाचार की भावना मानव को वाणी पर भी ह तो शरीर में भी हो । मन की तो कुछ कथा ही और है । मन की व्यथा मन ही जानता है । मन की कथा अनन्त काल पुरानी है। समस्त योग, ध्यान, साधना, तथा क्रिया मन के वशीकरण के लिए हैं । यदि वाणी तथा शरीर को शुद्ध बनाया जाए तो मन को शुद्ध बनाना सरल हो जाता है । ____ असत्य न बोलने का नियम लिया हो तथा वाणी पर कपट, निंदा, चुगली, कलह हो तो असत्य विरोधी आचार का भी कोई अर्थ नहीं। सत्याचरण के साथ वाणी के दूषित व्यवहार से भी बचना आवश्यक है। चारित्रधारी साधु को भी कभी छोटी सी बात पर क्रोध आ जाता है । देश विरतिधारी श्रावक छोटी-छोटी बातों को देख कर निंदा का मार्ग अपनाते हैं । बही दूषित व्यवहार व्यक्ति के आचार को भी दूषित कर देता है । काया तथा वाणी का दूषित व्यवहार साधुता तथा श्रावकत्व में कमी का प्रदर्शन करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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