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सम्यक् चारित्र जो लोग सिद्धि के मार्ग पर अग्रसर हैं, उन में हमारे अनुरूप व्रत नियम, पच्चखाण न भी हों, तो भी वे १४ अन्य द्वारों से उपर्युक्त उपायों के द्वारा मोक्ष को पा लेते हैं । तात्पर्य यह है, कि सच्चा चारित्र नियम या प्रदर्शन की वस्तु नहीं, वह अन्तरंग में अवश्य होना चाहिए ।
"आचारः प्रथमो धर्मः" आचार ही प्रथम थर्म है । यहां भी आचार का अर्थ है - बाह्य आचार तथा अन्तरंगशुद्धावस्था । धन तथा स्वास्थ्य के पीछे दौड़ने वाले चारित्र की कितना उपेक्षा करते हैं । यह बहुत शोचनीय प्रश्न है ।
एक सूक्ति है
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Wealth is lost, nothing is lost, Health is lost, Something is lost,
The character is lost, every thing is lost.
धन की हानि हो जाए, तो समझो कि कुछ नहीं गया, क्यों
कि वह पुनः प्राप्त हो सकता है । स्वास्थ्य की हानि हो जाए, तो समझो कि कुछ गया, क्योकि स्वास्थ्य पुनः मिलना कठिन होता है । यदि चारित्र चला गया, तो समझो, कि सर्वस्व लुट गया । शेष कुछ भी नहीं बच पाया है। एक ही दाग- एक ही असद् आचरण जीवन को बर्बाद कर देगा । एक गीत के शब्द हैं- इक छोटी सी भूल ने सारा गुलशन जला दिया । शायर के शब्दों में
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजाम गुलिस्तां क्या होगा । बरबाद गुलिस्तां करने को, बस एक ही उल्लू काफी है ॥ जीवन में एक ही असद् आचरण जीवन को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होता है । एकधा विषपान क्या मृत्यु के लिए पर्याप्त नहीं ? एक ही कंकर बर्तन को तोड़ने के जहां दुर्गुणों तथा असद् आचरण का भंडार हो, कोई कसर क्या शेष रह सकती है ? दुर्गुणों पापों तथा असद्
लिए बहुत है । वहां बर्बादी की
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