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________________ [१११ योग शास्त्र सम्यग्दर्शनं' कह कर भी धर्म के सिद्धांतों पर तथा सर्वज्ञोक्त तत्वों पर श्रद्धा को सम्यग्दर्शन कहा है । : श्रद्धा या तर्क : सर्वज्ञ के वचनों में सन्देह न हो, उस पर पूर्ण श्रद्धा हो जाना, पूर्ण विश्वास हो जाना अर्थात् उन्होंने जो कुछ कहा है व सत्य ही है तथा जो जैसा सत्य है, वैसा ही देख कर प्रभु ने कहा है । हमारे जैसे मंद बुद्धि उस गहन तत्व को न समझ पायें तो उस में उस वाणी का क्या दोष है ? यदि उल्लु दिन में नहीं देख पाता, तो इस में सूर्य का कोई दोष नहीं हो सकता । श्रेणिक सम्राट विरति धारी न था । मात्र क्षायिक सम्यक्त्व से हो उस ने अपने भव भ्रमण को सीमित कर लिया तथा तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन भी कर लिया । अगारमर्दकाचार्य अभव्य थे, उन्होंने शिष्यों को ज्ञान शक्ति से बोध दे कर सम्यक्त्वी बना कर दीक्षित किया, किन्तु यदि गर्दभ ५०० हाथियों का स्वामी बन जाए तो भी वह गर्दभ ही रहता है । भव्यों का प्रतिबोधक वह आचार्य, भव्य न बन सका । राजा ने रात्रि को स्पप्न देखा, कि एक गर्दभ के पीछे ५०० हाथी चले आ रहे हैं । जागृत होने पर राजा ने सोचा, कि यह कैसे सम्भव है, कि २०० हाथियों का नेता एक गधा हो । परन्तु प्रातः उस ने देखा कि ५०० हाथियों को साथ लेकर एक आचार्य नगर में प्रवेश कर रहा है ? " राजा समझ गया कि मेरे स्पप्न का गधा यही होना चाहिए । इस आचार्य की गर्दभ वृत्ति को कैसे जाँचा जाए ? राजा ने आचार्य की परीक्षा ली । उपाश्रय के प्रांगण में रात्रि के समय कंकर तथा कोयले के टुकड़े बिछा दिये । रात्रि में आचार्य लघुशंका के लिए उठे, तो अपने पदतल के नीचे कोयले की उपस्थिति से होती चरमर देख कर समझ बैठे, कि यहां किसी प्रकार के जीव उत्पन्न हो गये हैं । तुरन्त उन के मुंह से ये शब्द निकल पड़े - " अरे ! ये जीवड़े चड़-चड़ क्या कर रहे हैं ।” पार्श्ववर्ती कर्मचारियों ने राजा को सर्व वृत्तांत सुनाया । आचार्य के अभव्य स्व की परीक्षा हो चुकी थी । I For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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