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________________ सम्यग्यदर्शन : मोक्ष का प्रथम सोपान हमारी समस्त धर्म क्रियाओं का सार सम्यक्त्व है। मानो आपने २० शून्य लगा दिए हों, तो क्या उन का कोई मूल्य है.? शन्य की कीमत हो भी नहीं सकती। समस्त धर्म क्रियाओं की महत्ता भी शन्य से अधिक नहीं, परन्तु सम्यकश्रद्धा-सम्यग्दर्शन "१" के समान है । शून्य का अपने आप में मूल्य नहीं, जब कि "१"का अपने आप में भी कोई अर्थ है । दो-चार शून्य लगाने के पश्चात् उसके आगे “१” लगा दिया जाए, तो उसमें से प्रत्येक शून्य का मूल्य १० गुणा वृद्धिगत होता जाएगा । वह अरब खरब तक पहुंच जायेगा। महत्ता “१” की है। जब तक जीवन में श्रद्धा का “१” संयोजित न किया जाएगा, धर्म क्रिया रूप शून्य अर्थहीन रह जाएगा। एक लगने से संयुक्त शून्य, न केवल "१" की कीमत को बढ़ाता है, अपितु स्वयं भी मल्याँकित हो जाता है । पहले एक लगाओ, फिर शन्य लगाओ। एक लगने के पश्चात् शून्य न होगा तब भी आप एक पर स्वामित्व करंगे। यदि शून्य होने के पश्चात् एक न होगा, तो आप किस पर शासन करेंगे । संख्या पृथ्वी है, शून्य आकाश है । राज्य पृथ्वी पर ही हो सकता है । आकाश पर शासन कैसा ? तात्पर्य यह नहीं, कि धर्म क्रियाओं का कोई मूल्यांकन नहीं। हां! ये धर्म क्रियाएं स्वयं में मूल्य हीन हैं । “१” से संयुक्त होने के पश्चात् उन में अर्थ क्रिया कारित्व उत्पन्न हो जाता है (यहां अर्थ क्रिया कारित्व का अर्थ मोक्ष लक्ष्य प्राप्ति रूप में परिलक्ष्य है।) वह आप को मोक्ष तक ले जाएगी। यदि किसी अन्य वेषधारी में स्पष्ट श्रद्धा का दर्शन नहीं, परन्तु वह 'आत्मा है, इत्यादि षड्लक्षण तथा भेद विज्ञान की अन्तरंग अनुभूति करता है, तो वह भी सम्यकदष्टि ही कहा जायेगा। जरा विचार कीजिए, कि आप धार्मिक तो हैं, परन्तु श्रद्धा में कहां तक अग्रसर हैं ? श्रद्धा भी अविचल तथा अटल होनी चाहिए। जब देवता ने परीक्षा ली, तो राजा श्रेणिक गर्भवती साध्वी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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