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सम्यग्यदर्शनः मोक्ष का प्रथम सोपान थी। जिस का तात्पर्य है, कि जितने व्यक्ति जन्म लेते थे, उसी अनुपात से मरते भी अधिक थे। परन्तु आज मत्य की संख्या कम हो गई है और चूंकि मरते कम हैं, अतः जनसंख्या वृद्धि प्रतीत हो रही है। बच्चे उत्पन्न इतने नहीं हो रहे । बढ़े (४७ से अधिक आयु वाले) मरते कम हैं । जब वे मरते कम हैं, तो संसार में रहेंगे, फलतः जनसंख्या बढ़ती नज़र अवश्य आएगी, जन्म दर बढ़ी नहीं है, मत्यु दर कम हो रही है। अतः जनसंख्या वृद्धि हो रही है और मृत्यु की दर तो कम होनी ही चाहिए। आज विज्ञान ने नई चिकित्सा पद्धति तथा नए आविष्कार किए हैं। यहां तक कि मानव का दिल निकाल कर टेबल पर रख दिया जाता है तथा उस के स्थान पर दूसरा दिल आरोपित कर दिया जाता है। कैंसर जैसे रोगों का इलाज होने लगा है । बताइए ! मरण संख्या कम होने से जन संख्या वृद्धि का अध्यास क्यों न होगा? तात्पर्य यह है, कि जो कुछ महावीर ने कहा, वास्तव में वही सत्य है।
हमें शंका हो सकती है, लेकिन यदि शंका का समाधान नहीं मिलता, तो समझो, कि हमारी बुद्धि में कमी है । शास्त्र के ज्ञान में कमी हरगिज़ नहीं। हमारी बुद्धि कितनी है ? बहुत कम। तत्व को हम पूर्णतया नहीं समझ सकते । ऐसी स्थिति में शास्त्रों को गलत कहने के बदले अपनी बुद्धि को गलत कहो, यही बुद्धिमत्ता है । देव, गुरु, धर्म तथा शास्त्रों में श्रद्धा रखना, इस का नाम है सम्यग्दर्शन। ___ सम्यग्दर्शन की महत्ता-सम्यग्दर्शन की प्राप्ति क्यों आवश्यक है । अभव्य प्राणी चारित्र की साधना करके २१ वें देवलोक तक चला जाता है । परन्तु वह अनन्त संसार में भटकता रहता है, उसे मोक्ष कभी भी नहीं मिलता। कारण, कि उस ने सम्यग्दर्शन को पाया नहीं है । उस का चारित्र भी किस काम का, यदि साथ में श्रद्धा न हो, सम्यग्दर्शन न हो ?/
निश्चय सम्यग्दर्शन-सम्यग्दर्शन अर्थात् श्रद्धा, यह व्यव
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