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5. कालद्रव्य
स्वयं परिवर्तित होते हुए जीवादि द्रव्यों के परिवर्तन में जो सहायक कारण होता है वह कालद्रव्य है । अथवा वर्तना लक्षण वाला कालद्रव्य है । 105
सम्पूर्ण द्रव्यों का यह स्वभाव है कि वे अपने-अपने स्वभाव में सदा ही वर्ते, परन्तु उनका यह वर्तना किसी न किसी बाह्य सहकारी कारण के होने पर होता है, इसलिए इनको वर्ताने वाला सहकारी कारण रूप वर्तना गुण जिसमें पाया जाए उसे काल कहते हैं। इसी आधार पर 'काल' शब्द की व्युत्पत्ति की गयी है - जो द्रव्यों को वर्ताता है अथवा समयादि पर्यायों के द्वारा जो जाना जाए, जिसका निश्चय किया जाए, संख्या की जाए, निर्णय किया जाए वह काल है। 106 काल के सहयोग से ही समस्त द्रव्य वर्तते हैं।107 तात्पर्य यह है कि प्रत्येक द्रव्य में प्रतिसमय अपनी विविध पर्यायों के द्वारा उत्पाद-व्यय होता है । यह उत्पाद - व्यय अकारण तो हो नहीं सकता। जैसे—जीव और पुद्गलों की गति में धर्मद्रव्य सहयोगी कारण है और गतिपूर्वक होने वाली स्थिति में अधर्मद्रव्य सहयोगी कारण है, वैसे ही प्रत्येक द्रव्य की प्रतिसमय जो नयी-नयी पर्याय उत्पन्न होती हैं, वे अकारण नहीं हो सकतीं, उनका भी कोई सहयोगी कारण होना चाहिए । यहाँ जो भी सहयोगी कारण रूप से स्वीकार किया गया है वही काल द्रव्य है । यह काल द्रव्य परिणामी होने से दूसरे द्रव्य रूप परिणत हो जाए यह बात नहीं है । वह न तो स्वयं दूसरे द्रव्य रूप परिणत होता है और न दूसरे द्रव्यों को अपने स्वरूप अथवा भिन्न द्रव्यस्वरूप परिणमाता है, किन्तु अपने स्वभाव से ही अपने-अपने योग्य पर्यायों से परिणत होने वाले द्रव्यों के परिणमन में काल द्रव्य उदासीनता से स्वयं बाह्य सहकारी हो जाता है।108 यद्यपि परिणमन करने की शक्ति सभी पदार्थों में है, किन्तु बाह्यनिमित्त के बिना उस शक्ति की व्यक्ति नहीं हो सकती। जैसे कुम्भकार के चाक में घूमने की शक्ति स्वयं विद्यमान है, किन्तु कील का सहारा पाये बिना वह घूम नहीं सकता, वैसे ही संसार के पदार्थ भी कालद्रव्य की सहायता के बिना परिवर्तन नहीं करते । 'अत: काल द्रव्य उनके परिवर्तन में सहायक है; किन्तु वह भी वस्तुओं का बलात् परिणमन नहीं कराता है, किन्तु स्वयं परिणमन करते हुए द्रव्यों का सहायक मात्र हो जाता है।
कालद्रव्य के भेद 109 – कालद्रव्य के दो भेद हैं- 1. व्यवहार काल, 2. निश्चयकाल ।
(1) व्यवहार काल - जो द्रव्य - परिर्वतन रूप है और परिणाम, क्रिया, परत्व अपरत्व से जाना जाता है, वह व्यवहार काल है ।
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नयवाद की पृष्ठभूमि :: 51
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