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________________ छोड़कर दो गुण अधिक का ही बन्ध होता है अन्य का नहीं। इसी प्रकार जो अधिक गुणवाला परमाणु होता है वह हीन गुणवाले परमाणु को भी अपने रूप परिणमाने वाला होता है। जैसे-अधिक मधुर रसवाला गीला गुड़ अपने ऊपर पड़ी हुई रज को भी गुड़ रूप परिणमा लेता है। ऐसे ही जब दो स्कन्धों का परस्पर बन्ध होता है और अधिक गुणवाला हीन गुणवाले को अपने स्वरूप परिणमाता है तब पहिली दोनों अवस्थाओं के त्यागपूर्वक तीसरी अवस्था प्रकट होती है और दोनों का एक महास्कन्ध हो जाता है। अन्यथा अधिक गुणवाला परिणमाने वाला न होने से कृष्ण और श्वेत तन्तु की तरह संयोग होने पर भी भिन्नभिन्न ही रहते हैं। बन्ध के भेद परस्पर श्लेष रूप इस बन्ध के दो भेद हैं-(1) वैससिक और (2) प्रायोगिक। (1) वैससिक-बिना किसी प्रयत्न के बिजली, मेघ, अग्नि और इन्द्रधनुष आदि सम्बन्धी जो स्निग्ध और रूक्ष गुण निमित्तक बन्ध होता है, वह वैस्रसिक बन्ध है। कभी-कभी देखते ही देखते निरभ्र आकाश थोड़े से ही समय में रंग-बिरंगे बादलों से भर जाता है, वहाँ बादल रूप स्कन्धों का जमघट लग जाता है और कुछ ही क्षणों में वे बादल बिखरते दिखाई देते हैं। इसप्रकार से स्वाभाविक स्कन्धों का निर्माण और विघटन वैनसिक बन्ध है। (2) प्रायोगिक-प्रायोगिक बन्ध वह है जो किसी के प्रयोग से होता है। प्रायोगिक बन्ध दो प्रकार का है-(1) अजीव विषयक और (2) जीवाजीव · विषयक। लकड़ी और लाख-चपड़ा आदि का बन्ध अजीव विषयक प्रायोगिक बन्ध है और ज्ञानावरणादि कर्म और शरीरादि नोकर्म का बन्ध जीव के साथ होना जीवाजीव विषयक प्रायोगिक बन्ध है। प्रायोगिक बन्ध के भी आलपन, आलेपन आदि पाँच भेद हैं, जिनका विस्तृत विवेचन 'तत्त्वार्थ राजवार्तिक' आदि ग्रन्थों से . जानना चाहिए। . उक्त प्रकार का बन्ध पुद्गल द्रव्य में ही सम्भव है, अतः बन्ध भी पुद्गल · द्रव्य की ही पर्याय है। 3. सूक्ष्मता-सूक्ष्मता भी पुद्गल की पर्याय है; क्योंकि इसकी उत्पत्ति पुद्गल से होती है। सूक्ष्मता का अर्थ पतलापन या लघुता आदि है। जो वस्तु नेत्र से दिखाई न पड़े अथवा कठिनाई से दिखाई पड़े वह सूक्ष्मता है। इसके दो भेद नयवाद की पृष्ठभूमि :: 41 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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