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________________ 6 अध्ययन का निष्कर्ष जगत् के सभी जीव सुख-शान्ति चाहते हैं और उसको प्राप्त करने के लिए रातदिन प्रयत्न करते हैं, फिर भी वे उसका लेशमात्र भी प्राप्त नहीं कर पाते। इसका एक मात्र कारण है उनका भौतिकवादी दृष्टिकोण को अपनाना और अध्यात्मवादी दृष्टिकोण से अपने आपको ओझल रखना। ___ मोही जीव विषयभोग, अर्थसंचय आदि भौतिक पदार्थों के संयोग में सुख की कल्पना करते हैं, किन्तु वह कल्पना अल्पसामयिक ही होती है और वे उस प्रसंग से अहर्निश संकल्प-विकल्प के अनेक कष्टों को भोगते हैं। इतना होने पर भी वे सुख-शान्ति का सही उपाय प्राप्त नहीं कर पाते। सही उपाय वह है जिससे आत्मशन्ति की प्राप्ति हो, जिसके आश्रय से जीवन निराकुल हो सके। आत्मशान्ति कहीं बाहर से आने वाली नहीं, वह तो हमारे आत्मा का धर्म है, हमारी चेतना का धर्म है। शान्तिधाम हम स्वयं ही हैं। यदि स्वयं में शान्ति नहीं तो कितने ही उपाय किये जायें, शान्ति मिल नहीं सकती। अतएव शान्ति का उपाय है शान्ति-धाम आत्मा के स्वरूप का परिज्ञान और आत्मा से भिन्न बाह्य पदार्थों के स्वरूप का परिज्ञान। जब तक हम इन दोनों के स्वरूप का परिज्ञान नहीं करेंगे, उनके गुणदोषों का परिचय प्राप्त नहीं करेंगे तब तक हमें हेयोपादेय का ज्ञान नहीं हो सकता और हेयोपादेय के सम्यग्ज्ञान बिना हमें आत्मस्वरूप की प्राप्ति नहीं हो सकती, आत्मस्वरूप की प्राप्ति बिना शान्तिलाभ कैसे हो सकता है ? सुखप्राप्ति कहाँ से हो सकती है ? अतः आत्मस्वरूप का सम्यग्ज्ञान ही श्रेयस्कर है। निष्कर्ष यह है कि हमें वस्तु-स्वरूप का परिज्ञान करना चाहिए। वस्तुस्वरूप के परिज्ञान का आधार है स्याद्वाद। स्याद्वाद वस्तु-स्वरूप का यथार्थ विश्लेषण करता है। वह अनेक नयों की अपेक्षा से अनेकान्तात्मक या अनेक धर्मात्मक वस्तु के धर्मों का निर्णय करता है। वह बतलाता है कि नयों के सापेक्ष कथन से ही वस्तु-स्वरूप की सिद्धि होती है। आत्मस्वरूप का परिज्ञान होता है। 282 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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