________________
पर्यायार्थिक नय दोनों ही प्रमाण के अंश होने से सत्य हैं। इसी प्रकार निश्चयनय
और व्यवहारनय भी प्रमाण के अंश होने से सत्य हैं। द्रव्यार्थिक वस्तु को द्रव्य की प्रधानता से जानता है, पर्यायार्थिक नय वस्तु को पर्याय की प्रधानता से जानता है और निश्चयनय वस्तु को अभेद विधि से जानता है तो व्यवहारनय वस्तु को भेद विधि से जानता है। इस प्रकार भेदविधि से द्रव्य व पर्याय का ज्ञान कराने वाला यह अध्यात्म प्रयुक्त व्यवहारनय व्यवहारनय नामक द्रव्यार्थिक नयों में यथोचित समाविष्ट होने पर भी व्यवहारनय नामक द्रव्यार्थिक से भिन्न लक्षण वाला है तथा यह व्यवहारनय नामक द्रव्यार्थिकनय व्यवहार और उपचार से तो भिन्न है ही। इस प्रकार व्यवहार के विषय में बड़ी सूक्ष्मता से विचार करने की आवश्यकता है तभी तत्त्व की यथार्थ प्ररूपणा हो सकती है।
. संक्षेप में आध्यात्मिक नय निश्चय और व्यवहार के छह भेद हैं-निश्चयनय के शुद्ध निश्चयनय और अशुद्धनिश्चयनय ये दो भेद तथा व्यवहारनय के अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय और उपचरित सद्भूत व्यवहारनय, अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय और उपचरित असद्भूत व्यवहारनय ये चार, कुल मिलाकर छह भेद होते हैं।
___ जैनदर्शन मान्य यह नय का विषय अत्यन्त ही सूक्ष्म और गम्भीर है अतएव समझने में कठिन प्रतीत होता है। यदि इसको ठीक प्रकार से समझा जाय तब तो ये हितकारी है अन्यथा घातक अतएव अहितकारी है। इसीलिए आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है-जैनदर्शन का यह नयचक्र (नयसमूह) अत्यन्त कठिनता से पार हो सकने वाले महान् गहन वन के समान है। जैसे-कोई व्यक्ति महाभयंकर गहन वन में प्रवेश कर जाय तो उसका निकलना या बचना बहुत ही कठिन हो जाता है, जब तक कि उसे कोई प्रबुद्ध मार्गदर्शक न मिल जाय, वैसे ही अत्यन्त सूक्ष्म और गम्भीर विषय वाला यह समस्त नयसमूह है। इसमें जो जिज्ञासु मार्गभ्रष्ट हो जाते हैं अर्थात् उन्हें ठीक-ठीक नहीं समझ पाते हैं, उनके समझने में भ्रान्त या विमूढ हो जाते हैं अर्थात् उनका एकान्त और निरपेक्ष रूप से प्रयोग करते हैं, तब ऐसी स्थिति में उन्हें यदि कोई शरण है तो उन नय विशेषज्ञ आचार्यों की ही है, जो नयों की अत्यन्त गम्भीर और सूक्ष्म विशेषताओं को जानते हैं, वस्तु स्वरूप का परिज्ञान करने के लिए उनका सापेक्ष निरूपण करते हैं। यदि कोई इस नयचक्र का प्रयोग इन आचार्यों की शरण लिये बिना करता है तो उसका बड़ा अनर्थ हो जाता है; क्योंकि यह नयचक्र अत्यन्त तीक्ष्ण धार वाला है, इसका प्रयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिए। अन्यथा यह इसको धारण करने वाले, किन्तु उसकी प्रयोगविधि को न जानने वाले अज्ञानी
नयों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद :: 277
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org