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39. पर्यायस्तु क्रमभावी, यथा तत्रैवसुखदुखादि। वही, सू. 5/8 - 40. द्रवति, गच्छति, प्राप्नोति, द्रोष्यति, गमिस्यति, प्राप्स्यति, अदुद्रुवत् अगमत् प्राप्तवान्
तांस्तान् पर्यायान् इति द्रव्यम्।-त. वृ. 5/38, पृ. 207 41. पंचास्ति., गा. 9 42. स. सि., सू. 5/2 43. लघी., पृ. 11 44. आ. प., सू. 96 45. न. च., गा. 35-36 46. ध. पु. 1, पृ. 83 47. ज. ध., पु. 1, पृ. 211 48. द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः।-ध., पु.1, पृ. 83 49. लघी., पृ. 51 50. ध. पु. 1, पृ. 84 51. त. वृ. 5/38, पृ. 207 52. ज. ध., पृ. 217 53. ध. पु. 1, पृ. 85 54. स पर्याय: अर्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायार्थिकः।-ज. ध., पृ. 217 55. लघी., पृ. 51 56. जैनसिद्धान्त द., पृ. 25 57. आ. प., सू. 46 58. वही, सू. 57 59. वही, सू. 64 60. वही, सू. 68 61. वही, सू. 71 62. वही, सू. 73 63. वही, सू. 76 64. न. च., गा. 187 65. जावदिया वयणवहा तावदिया चेव होंति णयवादा।-गो. क. का., गा. 894 66. आ. प., सू. 41 67. चत्वारोऽर्थनया येते जीवाद्यर्थव्यपाश्रयात्।
त्रयः शब्दनयाः सत्यपदविद्यां समाश्रिताः ।।-लघी. का. 72 68. त. सू. 5/38 69. त. रा. वा. 1/33, वा. 2 70. स. सि., सूत्र 1/33 की वृत्ति 71. लघी. का. 39 तथा 68 72. लघी. का. 39 तथा सि. वि. टीका-पृ. 674-76 73. त. श्लो. वा.-पृ. 269-70
248 :: जैनदर्शन में नयवाद
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