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में रहने वाला सम्बन्ध इसका विषय कैसे हो सकता है ? इसलिए सजातीय और विजातीय दोनों प्रकार की उपाधियों से रहित केवल शुद्ध परमाणु ही इस नय का विषय है अत: जो स्तम्भादि रूप स्कन्धों का प्रत्यय होता है वह ऋजुसूत्र नय की दृष्टि में भ्रान्त है। कोई किसी से समान नहीं। परमाणु निरवयव है; क्योंकि परमाणु परमाणु न रह कर स्कन्ध हो जाएगा। यह नय प्रत्येक वस्तु को निरंश रूप से ही स्वीकार करता है। यहाँ इस नय का विषय जो शुद्ध परमाणु कहा है उसका अर्थ परमाणु द्रव्य नहीं लेना चाहिए; किन्तु निरंश और सन्तानरूप धर्म से रहित शुद्ध एक पर्याय मात्र लेना चाहिए। इस प्रकार जब इसका विषय शुद्ध निरंश पर्याय-मात्र है तो दो में रहने वाला सदृश परिणाम इसका विषय कभी भी नहीं हो सकता है। यह नय द्रव्यगत भेद को ग्रहण न करके कालभेद से वस्तु को ग्रहण करता है। इसलिए जब तब द्रव्यगत भेदों की मुख्यता रहती है तब तक व्यवहार नय की प्रवृत्ति होती है और जब से कालनिमित्तक भेद प्रारम्भ हो जाता है। तब से ऋजुसूत्र का प्रारम्भ होता है। यहाँ काल-भेद से वस्तु की वर्तमान पर्याय मात्र का ग्रहण किया है। अतीत और अनागत पर्यायों के विनष्ट और अनुत्पन्न होने के कारण ऋजुसूत्र नय के द्वारा उनका ग्रहण नहीं होता है। यद्यपि शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ये तीनों नय भी वर्तमान पर्याय को ही विषय करते हैं, परन्तु वे शब्द भेद से वर्तमान पर्याय को ग्रहण करते हैं; इसलिए उनका विषय ऋजुसूत्र से सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम माना गया है। इस प्रकार ऋजुसूत्र नय तत्त्व को केवल वर्तमान कालरूप से स्वीकार करता है और भूतकाल तथा भविष्यत् कालरूप से स्वीकार नहीं करता अर्थात् यह नय शुद्ध वर्तमान कालीन एकक्षणवर्ती पर्याय-मात्र को विषय करता है। ___ऋजुसूत्र नयाभास-बौद्धों का क्षणिक वाद या पर्यायवाद ही ऋजुसूत्र नयाभास है; क्योंकि क्षणिकवादी बौद्ध दर्शन द्रव्य की सत्ता मानने से सर्वथा निषेध करता है, उसका सर्वथा अपलाप करता है और केवल पर्याय को ही अपने दृष्टिकोण में रखता है, किन्तु पर्यायों में अनुस्यूत अन्वयी द्रव्य नहीं मानता। अतएव यह नय आभासरूप है।
ऋजुसूत्र नय के भेद2-इसके दो भेद हैं-(1) सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय, और (2) स्थूल ऋजुसूत्र नय। ___ सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय—जो द्रव्य में एक समयवर्ती सूक्ष्म किन्तु ध्रुवत्व पर्याय को अर्थात् द्रव्य की केवल एक समय प्रमाण स्थिति को ग्रहण करता है वह सूक्ष्म ऋजुसूत्र है। जैसे-सभी ही शब्द क्षणिक हैं, ऐसा कहना। यह नय वस्तु की एक समय मात्र की वर्तमान पर्याय को ग्रहण करता है। अर्थ पर्याय को विषय करने वाला
240 :: जैनदर्शन में नयवाद
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