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रहती हैं। 1
इस प्रकार द्रव्य में गुण और पर्याय सदा रहती हैं। प्रत्येक द्रव्य अनन्त गुणों का और क्रम से होने वाली उनकी पर्यायों का पिण्ड मात्र है । सर्वत्र गुणों को अन्वयी - नित्य और पर्यायों को व्यतिरेकी - अनित्य कहा गया है । इसका यही मतलब है कि जिनसे धारा में एकरूपता बनी रहती है वे गुण कहलाते हैं और जिनसे उसमें भेद प्रतीत होता है वे पर्याय कहलाते हैं। जीव में ज्ञानादि की धारा का, पुद्गल में रूपरसादि की धारा का, धर्म द्रव्य में गतिहेतुत्व की धारा का, अधर्म द्रव्य में स्थितिहेतुत्व की धारा का, आकाश में अवगाहन हेतुत्व की धारा का और काल द्रव्य में वर्तना की धारा का कभी विच्छेद नहीं होता, इसलिए वे ज्ञानादिक उस उस. द्रव्य के गुण हैं; किन्तु वे गुण सदा काल एक रूप नहीं रहते। जो नित्य द्रव्यों के गुण हैं उन्हें यदि छोड़ भी दिया जाये तो भी जीव और पुद्गलों के गुणों में प्रतिसमय स्पष्टतया परिणाम लक्षित होता है । जैसे- जीव का ज्ञान-गुण संसार अवस्था में कभी मतिज्ञान रूप होता है तो कभी श्रुतज्ञान रूप । इसलिए ये तिज्ञानादिज्ञान - गुण की पर्याय हैं। इसीप्रकार अन्य गुणों में भी जान लेना चाहिए। द्रव्य सदा इन गुण रूप पर्यायों में रहता है, इसलिए वह गुण, पर्याय वाला कहा गया है। गुण और पर्याय द्रव्य से भिन्न नहीं हैं तथा द्रव्य गुण और पर्याय से भिन्न नहीं है इसलिए द्रव्य को गुण और पर्यायों से अभिन्न कहा है। ये गुण और पर्याय ही द्रव्य की आत्मा हैं, द्रव्य के स्वरूप हैं।2 जैसे मक्खन, घी, दूध, दही से रहित गोरस नहीं होता उसी प्रकार पर्यायों से रहित द्रव्य नहीं होता और जैसे गोरस से रहित दूध, दही, घी, मक्खन आदि नहीं होते उसी प्रकार द्रव्य से रहित पर्याय नहीं होतीं । इसलिए कथन की अपेक्षा यद्यपि द्रव्य और पर्यायों में कथंचित् भेद है तथापि उन सबका अस्तित्व जुदा नहीं है, वे एक दूसरे को छोड़कर नहीं रह सकते, इसलिए वस्तु रूप से उनमें अभेद है । जिस प्रकार पुद्गल से भिन्न स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण नहीं होते उसी प्रकार द्रव्य के बिना गुण नहीं होते और जिस प्रकार स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण के बिना पुद्गल नहीं होता उसी प्रकार गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता। इसलिए यद्यपि कथन की अपेक्षा द्रव्य और गुणों में कथंचित् भेद है तथापि उन सबका एक अस्तित्व नियत है, वे परस्पर में एक दूसरे को कभी नहीं छोड़ते, इसलिए वस्तु रूप से द्रव्य और पर्यायों की तरह द्रव्य और गुणों में भी अभेद है । 24
पहले यद्यपि द्रव्य को उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वभाव वाला कहा गया है और गुण, पर्याय वाला भी; पर विचार करने पर इन दोनों लक्षणों में कोई अन्तर नहीं प्रतीत होता है। केवल दृष्टिभेद है, अभिप्राय में भेद नहीं है; क्योंकि जो वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वरूप कही जाती है, वही गुण, पर्याय स्वरूप वाली है।
22 :: जैनदर्शन में नयवाद
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