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24 आगम वाणी इन्द्रियों में रसनेन्द्रिय, कर्मों में मोहनीय कर्म, व्रतों में ब्रह्मचर्य और गुप्ति में मन गुप्ति (मन का कंट्रोल) इन पर काबू पाना जीवन में दुर्लभ है। वैदिक वाणी : जितं केन? रसो हि येन। जिसने जीभ पर विजय पा ली वो ही सच्चा विजेता है। मानव में जब विवेक आता है तब लालीबाई (जीभ) के तूफान बंद होते हैं। मनुष्य जब भोजन की थाली पर बैठता है तब उसकी असलियत बाहर आती है। “व्यापार मे नरम, हुकुमत में गरम, धर्म में शर्म।” शर्म के द्वारा धर्म में आगे बढ़ सकते हैं। मैं ऐसे उत्तम कलवाला, मेरे से अभक्ष्य का भक्षण कैसे हो?जो बेशर्म होता है वह धर्म के लिए लायक नहीं है। जिसकी आँखों में शर्म का जल सूख गया हो, उसका साथ शीघ्र छोड़ दीजिए, बहुत सारे पापों से बच जाओगे।
- गुड नाईट-72
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