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डाल कर चढ़ा सकते हैं। • अंग पूजा होने के पश्चात् धूप, दीप प्रकटाना,
गंभारे में धूप-दीप नहीं लेकर जाना। धूप-दीप-अक्षत-नैवेद्य-फल पूजा के बाद निसीहि कहकर चैत्यवंदन करना। १०० वर्ष पुराने भाववाही स्तवन बोलने चाहिए। इसके बाद प्रभु की आँखों में आँखे मिलाकर ऐसे भाव हृदय में लाने चाहिए, "ह प्रभो! आप ही मेरे आधार हो।' ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए। प्रभु के सामने त्राटक योग करके लययोग' में प्रभुमय बनना चाहिए। दर्पण-पंखी व चामर पूजा (नृत्य पूजा) करने के बाद घंटनाद करके प्रभु को पीठ न हो ऐसे बाहर निकलना चाहिए।
- गुड नाईट-58
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