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* प्रांसगिक चिंतन
• जो नवकार गिनता है उसको भव गिनना नहीं
पड़ता।
योगी के पास जाओ, योगी न बन सको तो उपयोगी अवश्य बनो ।
• संत के पास जाओ और संत न बन सको तो शांत अवश्य बनो ।
।
आग से भरे अंगारे नदी में डुबकी लगाते ही ठंडे हो जाते हैं। चाहे कैसा भी टेंशन हो, हृदय में ज्वाला हो लेकिन प्रभु की शरण में आ जाओ ठंडे बन जाओगे। भक्त शासन का बनाओ, देवगुरू का बनाओ, तिर जाओगे । अपना भक्त बनाने की वृत्ति छोड़ देनी चाहिये । छोटी-छोटी सी बात में शासन को छिन्न-भिन्न मत करो। तीर्थों पर आक्रमण, शासन पर आक्रमण आ रहा है । कमर कसकर शासन रक्षा, तीर्थ रक्षा करने का पुरूषार्थ बढ़ाओ ।
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गुड नाईट - 36
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