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कुंभकर्ण आदि की दीक्षा
कुंभकर्णादि सुभटों के मन में वैराग्य जागृत हुआ ही था, इतने में कुसुमायुध नामक वाटिका में चतुर्ज्ञान के स्वामी अप्रमेयबल मुनि पधारे। उन्हें उसी स्थान पर उसी रात्रि में उज्वलतम केवलज्ञान प्राप्त हुआ, तब देवताओं ने हर्षपूर्वक केवलज्ञान महोत्सव मनाया। रामचन्द्र, लक्ष्मण, कुंभकर्णादि समस्त उनके दर्शनार्थ आए। इन्द्रजित व मेघवाहन ने मुनिश्री की वैराग्यपूर्ण देशना सुनकर उनसे अपने पूर्वभवों के विषय में प्रश्न किए। केवलज्ञानी मुनिश्री ने उन्हें पूर्वभव का संपूर्ण विवरण किया।
अपने पूर्वभवों का वृतान्त सुनकर उनका वैराग्य तीव्रतम हो गया। अतः कुंभकर्ण, इंद्रजित, मेघवाहन, एवं मंदोदरी ने केवलज्ञानी मुनिश्री अप्रमेयबल से दीक्षा ग्रहण की।
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रामचंद्रजी का लंकाप्रवेश व अयोध्या में पुनरागमन
राम-लक्ष्मणादि वीरों ने समारोहपूर्वक लंका में प्रवेश किया। वे सत्वर देवरमण उद्यान में गए। वहाँ सीताजी को पाकर वे हर्ष से पुलकित हुए। लक्ष्मण, सुग्रीव व हनुमान ने सती सीताजी को सादर प्रणाम किया। वहाँ से निकलकर राम, लक्ष्मण, सीता आदि श्रीशांतिनाथजी के जिनालय में गये विभीषण ने उत्तमोत्तम अक्षत, पुष्प, केसरादि सुगंधीद्रव्य, मिष्टान्न, फल इत्यादि पूजासामग्री का पहले ही प्रबंध कर रखा था। पूजा के पश्चात् वे राजप्रासाद गए। राजसभा में श्रीराम को सिंहासन ग्रहण करने का अनुरोध कर बिभीषण बोला, “यह राक्षसद्वीप अब आप का है। आप इसे ग्रहण कीजिये। मैं आपकी सेना का एक सामान्य सैनिक बनकर रहूँगा। हमारी इच्छा है। कि आपका राज्याभिषेक हो, अतः आप इस विषय में हमें आज्ञा दें।"
राम ने कहा, "हे बिभीषण ! क्या आपको स्मरण है कि रामसेना में आपका स्वागत करते समय मैंने क्या कहा था? मैंने आपसे वचन दिया था कि युद्ध में विजय के उपरांत आप ही लंका का पदभार संभालेंगे। मुझे तो लगता है कि निःस्वार्थ भक्तिभाव के कारण आप बाँवरे तो नहीं बने ?" इसके पश्चात् सुमहूर्त देखकर रामचंद्र ने विभीषण का अभिषेक करवाया। अभिषेक के उपरांत वे समस्त, रावण के प्रासाद
में गए।
इन्द्रजित व मेघवाहन के पूर्वभव के लिए पढिये परिशिष्ट : ६
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सिंहोदरादि जिन राजाओं ने लक्ष्मण से अपनी कन्याओं के पाणिग्रहण के विषय में वचन लिए थे, वे समस्त अपनी-अपनी कन्याओं को लेकर वहाँ पहुँच गए। लक्ष्मण के साथ उन सभी का विधिवत् विवाह संपन्न हुआ।
विंध्यस्थल में इन्द्रजित व मेघवाहन, इन दोनों मुनिओं को मोक्ष प्राप्त हुआ । यह स्थान मेघरथ, इस नाम से प्रसिद्ध हुआ। नर्मदा नदी के तट पर मुनि कुंभकर्ण को मोक्षप्राप्ति हुई। उसके पश्चात् यह स्थान पृष्टरक्षित, इस नामसे प्रसिद्ध हुआ।
एक दिन धातकीखंड से नारदजी अयोध्या पधारे। राजमहल जाकर वे माता कौशल्या व माता सुमित्रा से मिले। वे दोनों दुःखी एवं चिंतित थी। नारदजी ने उनसे दुःख का कारण पूछते ही उन्होंने राम के वनवास से लेकर विशल्या के लंकागमन तक का वृत्तांत बड़े करुण स्वर में नारदजी से कहा। उन्होंने आगे यह भी बताया कि राम, लक्ष्मण के जीवित होने की जानकारी उन्हें न मिलने के कारण वे चिंतित थी । यह सुनते ही नारदजी ने उनको आश्वासन दिया कि वे व्यर्थ ही चिंता कर रही थी व वे स्वयं लंका जाकर राम, लक्ष्मण, सीता को पुनः अयोध्या लेकर आनेवाले हैं। लोगों द्वारा लंका का वृत्तांत जानकर नारदजी ने भी राम के पास जाने का निर्णय किया।
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