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अपने भ्राता को धराशायी होते देखकर विभीषण शोकावेग से संतप्त होकर आत्महत्या करने ही वाले थे किंतु राम ने रुदन करते विभीषण के हाथों से कटार छीन ली विलाप करती मंदोदरी के साथ बिभीषण रावण के शव के समीप गए। राम एवं लक्ष्मण ने उन्हें आलिंगन देकर आश्वासन देते कहा, "युद्ध तो क्षत्रिय के लिए क्षात्र धर्म है व भीरुता अधर्म है। आपके भ्राता युयुत्सु थे, उन्हें वीरमरण प्राप्त हुआ है, क्योंकि अंतिम क्षण तक वे वीरतापूर्वक युद्ध करते रहे।
जब दो क्षत्रियों के बीच युद्ध होता है, तब किसी एक का मृत्यु निश्चित है, परंतु क्षत्रिय वीरतापूर्वक युद्ध करते हैं व वीरतापूर्वक वीरगति पाते हैं। वीरगति पानेवाले क्षत्रिय की प्रशंसा देवगण भी करते हैं रावण की मृत्यु वीरोचित थी अब उनकी अंत्येष्टि एवं उत्तरक्रिया कीजिए।” यह कहकर राम ने कुंभकर्ण, इंद्रजित, मेघवाहन आदि रावणसेना के सुभटों को बंधमुक्त करवाया।
कुंभकरण आदि की दीक्षा
नेत्रों से निरंतर अश्रुधाराएँ बहाते हुए बिभीषण, कुंभकर्ण, इंद्रजित, मेघवाहन ने गोशीर्ष चंदन कर्पूर आदि सुगंधी द्रव्यों से रावण का अग्निसंस्कार किया। अंत्येष्टि के पश्चात् रामचंद्र ने उन चारों से कहा, "आप सभी मिलकर अपना यह साम्राज्य चलाईये। हमें न आपके राज्य की आवश्यकता है, न धन की। " किंतु कुंभकर्णादि वीर व वीरागंना मंदोदरी ने कहा, "मृत्यु तो क्षत्रिय के जीवन का एक अविभाज्य अंग है, स्वजन का असमय मृत्यु देखकर हमारे मन में वैराग्य जागृत हुआ है जीवन क्षणिक है, मृत्यु निश्चित है, केवल मोक्ष ही शाश्वत है। हमारे मन में अब राज्यवैभव की लालसा नहीं रही। हम तो मोक्षसाधना के लिए दीक्षा ग्रहण करना चाहते हैं। "
आज हम प्रत्येक क्षण मृत्यु का साक्षात्कार करते हैं। प्रत्येक दिन हम किसी जाने अंजाने व्यक्ति का मृत्यु देखते हैं, या उसके विषय में सुनते हैं, पर हम यह नहीं समझते आज उनके साथ जो हुआ है वह कल हमारे साथ होगा - फिर क्या ?
शास्त्र में कहा है कि,
अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शस्वतः ।
नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्तव्य धर्मसंचयः ॥
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शरीर अनित्य है, उसका कोई भरोसा नहीं, कब व्यधिग्रस्त बन जाए। वैभव संपत्ति व सत्ता शाश्वत नहीं है। मृत्यु हमेशा पास में खड़ी हैं। इसलिये चारित्र धर्म का संचय करना चाहिये अर्थात् दीक्षा लेनी चाहिये।
मरणोपरांत मेरा क्या होगा ? इसके विषय में विचार करने के लिए हमारे पास समय ही कहाँ है ? भूकंप से, बाढ से, दुर्घटना से, बमविस्फोट से अनगिनत लोग मरते हैं किंतु हमारे कठोर हृदय में वैराग्य जागृत नहीं होता। हमें विचार करना चाहिए कि एक स्वजन की असमय मृत्यु ने जिन्हें दीक्षा लेने की प्रेरणा दी, वे कुंभकर्ण, इंद्रजित, मेघवाहन व मंदोदरी कितनी महान आत्माएँ थी, दुसरी ओर हम हैं, जो मृत्यु का रौद्र तांडव देखकर भी अपनी भोगलालसा को छोड़ नहीं पाते ।
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