SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 71 इतने में अपने तेज से नभोमंडल को प्रकाशित करती बहुरूपिणी विद्या वहाँ अवतीर्ण हुई व बोली, “वत्स रावण ! तुम्हारी साधना सिद्ध हो चुकी है। मैं प्रसन्न हूँ। बताओ, मैं तुम्हारे लिये क्या करूँ? मैं समूचे जगत को वश कर सकती हूँ। मेरे समक्ष राम अथवा लक्ष्मण केवल नाम मात्र है...." रावण ने कहा, "मातः ! आप सर्वशक्तिमान हैंकिंतु इस पल मुझे आपकी आवश्यकता नहीं है। आपात्काल में जब आपका स्मरण करूँ, तब मेरी सहायता के लिए पधारिये, इतनी ही विनति है।" 'तथास्तु' कहकर बहुरूपिणी विद्या अदृश्य हो गई। नम्रतापूर्वक समझाया है। अब मैं तेरे पति का वध करुंगा व नियमभंग कर तुम्हारे ऊपर बलात्कार भी करुंगा।" रावण का यह दर्पोक्तिपूर्ण भाषण सुनकर सीता बेहोश हो गयी। कुछ समय के पश्चात् सीता होश में आकर कहने लगी, "राम व लक्ष्मण की मृत्यु हो गई, तो मैं भी अनशन करके प्राणत्याग करूंगी।" सीताजी की बात सुनकर रावण यह विचार करने के लिए विवश हुआ कि सीताजी का राम के प्रति प्रेम स्वाभाविक है। अतः सीता के मन में मेरे लिए अनुराग निर्माण करना बंजर जमीन में बीज बोने की हास्यास्पद चेष्टा होगी। मैंने तो अपने कुल को भी कलंकित किया है। कल प्रातः युद्धभूमि से राम-लक्ष्मण को बंदी बनाकर लाऊँगा और सीता को उन्हें सौंप दूंगा। मेरा यह कर्म धार्मिक एवं नैतिक भी कहलवाएगाँ। जब उसे अंगदद्वारा मंदोदरी पर किए गए अपमान के समाचार मिले, तब उसने अहंकारपूर्वक कहा, “यह अंगद कौन है ? अब अल्प समय में उसकी मृत्यु होनेवाली है" रावण स्नानादि क्रिया के उपरांत देवरमण बगीचे में गया व सीता से कहने लगा, “मैंने तुम्हें अनेकबार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy