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________________ आत्महत्या का प्रयास राम, लक्ष्मण, सीता वहाँ से निकल कर अनेक ग्राम व नगर पार करते हुए एक बड़े वन में पहुँचे। वर्षाऋतु का आरंभ होने के कारण वे एक विशाल वटवृक्ष के तले रुक गए। वहाँ इभकर्ण नामक एक यक्ष रहता था। राम के रूप, तेजस्विता एवं भाषण से उसके मन में भय निर्माण हुआ । इसलिए वह गोकीर्ण यक्ष के पास पहुँचा । गोकीर्ण यक्ष अवधिज्ञानी था। अतः उसे इन पुण्यशाली व पराक्रमी बंधुद्वय की सभी विशेषताएँ तथा आगमन के विषय में संपूर्ण जानकारी हुई। इतना कहकर कंठ में पाश बांधकर वह वृक्ष से लटकने लगी। उसकी प्रार्थना सुनते ही लक्ष्मण ने कहा, "हे आयें ! ऐसा दुःसाहस मत कीजिये ! क्या आप जानती नहीं कि आत्महत्या महापाप है। मैं ही वह लक्ष्मण हूँ, जिसका आपने चयन किया है।" उन्होंने पाश तोड़कर राजपुत्री को वृक्ष से नीचे उतारा। गोकीर्ण यक्ष ने नगरी बसाई उस यक्ष ने अपने दैविक शक्ति का विनियोग कर एक ही रात्रि में अडतालीस कोस लंबी व छत्तीस कोस चौडी एक नगरी बसायी, व उसका नाम 'रामपुरी' रख दिया। गोकीर्ण यक्ष की विनति सुनकर रामचंद्रजी ने चातुर्मास वहाँ बीताया। चातुर्मास संपन्न होते ही गोकीर्ण यक्ष ने राम को स्वयंप्रभ हार, लक्ष्मण को रत्नकुंडलद्वय व सीता को चूडामणि तथा वीणा सौगात के तौर पर दी। चातुर्मास के पश्चात् वे आगे चल दिए। वन पार कर तीनों संध्या के समय विजयनगर की सीमाओं के बाहर एक बगीचे में वटवृक्ष तले रुके। उस नगर के राजा महीधर और रानी इन्द्राणी की वनमाला नामक एक पुत्री थी। शैशव से उसने लक्ष्मण के रूप, गुण एवं पराक्रम की प्रशंसा सुनी थी। वह मनोमन लक्ष्मण को अपना पति भी मानने लगी। दशरथ की दीक्षा व राम, लक्ष्मण और जानकी के वनवास के समाचार सुनकर राजा महीधर दुःखी हो गए थे। अतः उन्होंने चंद्रनगर के राजा वृषभ के सुपुत्र सुरेन्द्र से अपनी कन्या का विवाह निश्चित किया। यह जानकर वनमाला ने आत्महत्या करने का निर्णय किया। रात्रि के समय वह राज्य की सीमाओं के बाहर प्रातः उन्होंने पूर्ण हकीकत भ्राता राम को सुनायी। प्रातः उसी उद्यान में आई। वटवृक्ष पर चढ़कर उसने अपने ही उत्तरीय वस्त्र राजा महीधर अपनी कन्या को ढूंढते ढूंढते वहाँ आ गये। आंगतुकों को देखकर उन्हें लगा कि वे चोर है। अतः उन्होंने राम-लक्ष्मण पर आक्रमण से कंठपाश बनाया व वटवृक्ष की शाखा से बांध दिया। उस समय राम किया। उनका पराक्रम देखते ही राजा को ज्ञात हुआ कि वे दोनों कोई व सीता निद्राधीन थे। परंतु लक्ष्मण जाग रहे थे। सामान्य युवक नहीं है। अतः उन्होंने युवकों से अपना परिचय पूछा। वनमाला ने वनदेवता से प्रार्थना की, "हे वनदेवता...! इस जब उन्हें पता चला कि वे युवक राम और लक्ष्मण हैं, तो उन्होंने हाथ जन्म में तो मैं लक्ष्मण की पत्नी न बन पाई, कम से कम समस्त भावी जोड़कर लक्ष्मण से अपनी पुत्री स्वीकारने का अनुरोध किया। राजा जन्मजन्मांतर में केवल लक्ष्मण ही मेरे पति बनें, यह वरदान महीधर ने उन्हें अपने प्रासाद बुलाकर उनका सम्मान किया। कुछ दीजिए।" दिन प्रासाद में रहकर राम ने राजा से गमन के लिए अनुज्ञा माँगी। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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