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________________ 42 यह सुनकर लक्ष्मण कुपित हुए। क्रोध से उनके नेत्र आरक्त बनें। अपने दाँतो को भींसकर वे बोले, “हे मूर्ख ! अब तक मैं अपने राजा का दूत बनकर तेरा सम्मान कर रहा था, परंतु तू सम्मान के योग्य नहीं है। उठ ! मैं तुझे युद्ध के लिए आह्वान करता हूँ ! सावधान...." लक्ष्मण की चुनौती सिंहोदर ने स्वीकार कर सेना सहित उस पर आक्रमण किया। लक्ष्मण अपने भुजाबल से हस्तियों का आलानस्तंभ (हाथी बाँधने के लिए बनाये गए स्तंभ) कमलनाल की भाँति उखाड़ कर उनसे शत्रुओं पर प्रहार करने लगे। देखते देखते समस्त सेना हतवीर्य एवं हतोत्साह बन गई। एक ही छलांग मारकर लक्ष्मण हाथी पर आरुढ हुए व सिंहोदर राजा की ग्रीवा में उसका उत्तरीय वस्त्र बाँधकर पशु की तरह अपने भ्राता के समक्ष लाए। 15 Jain Educatio 20480 रामचंद्रजी को देखते ही सिंहोद राजा ने विनम्र होकर उन्हें प्रणाम किया व क्षमायाचना की। राम ने राजा वज्रकर्ण व राजा सिंहोदर की संधि करवायी। राजा सिंहोदर ने अपना आधा राज्य वज्रकर्ण को दिया। इस प्रकार इस बंधुद्वय ने निःस्वार्थभाव से साधर्मिक एवं धर्मनिष्ठ वज्रकर्ण की सहायता की। वज्रकर्ण ने आठ कन्याएँ व सिंहोदर ने तीन सौ कन्याएँ लक्ष्मण को वाग्दानद्वारा दी। लक्ष्मण ने उन्हें आश्वासन दिया कि अयोध्या पुनरागमन के समय निश्चित उन तीनसौ आठ कन्याओं का पाणिग्रहण करेंगे। इसके पश्चात् वे मलयाचल की दिशा में चल दिए । गोकर्ण यक्ष द्वारा सेवा 'For Personal & Private Use Only दिलीप साकरिया 8/97 www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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