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दशरथ की दीक्षा
उसके बाद राजा दशरथ एवं बहत्तर (७२) सुभटों ने मुनिश्री सत्यभूति से संयम का अंगीकार किया व विशिष्ट साधना में लौलीन हो गए । अपने पूज्य भ्राता के विरह से दुःखी भरत, अरिहंत परमात्मा की आराधना में उद्यमवंत बने । उन्होंने यह अभिग्रह किया कि जब रामचंद्रजी पुनः अयोध्या लौटेंगे, तब मैं दीक्षा ग्रहण करूँगा।
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