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________________ 106 (1) रामचंद्रजी को प्रतिबोध देने स्वयं जटायुजी देव चौथे देवलोक से पृथ्वी पर उतरे और रामचंद्रजी के समक्ष एक शुष्कवृक्ष पर जल सिंचने लगे। उनकी यह चेष्टा देखकर रामचंद्रजी बोले, "हे मित्र ! इस अचेतन वृक्ष को आप चाहे कितना भी पानी पिलाईगा, उसका नव पल्लवित होना अशक्य है। आपके सभी प्रयत्न निष्फल बनेंगे।" (2) तब वह देव एक पाषाण पर गोबर, बकरी की मैंगनी आदि खाद डालकर कमलिनी को रोपने लगा। तब रामचंद्रजी बोले "बंधु ! पाषाण के ऊपर आप चाहे कितना भी उत्तम खाद डाले व उत्तम वृक्षारोपण करेंगे, तो वह निष्फल प्रयत्न कहलाएगा। क्योंकि उत्तम प्रकार की मृत्तिका में ही वृक्षारोपण करने से सफलता मिलती है, पत्थर के ऊपर वृक्षारोपण करने से क्या मिलेगा ?" उसी समय सेनापति कृतांतवदन की आत्मा, जो अब देव बन गई थी, वह अवधिज्ञान से समस्त वृत्तांत जान गई । कृतांतवदन देव ने मानव रूप धारण किया। वह अपने कंधों पर एक स्त्री का शव उठाकर रामचंद्रजी के समीप आया रामचंद्रजी ने कहा, "हे मुग्ध ! इस तरह एक स्त्री का शव अपने कंधोंपर उठाए क्यों फिर रहे हो ?" मानवदेहधारी देव ने कहा, "आप ऐसी अमंगल बाते क्यों कर रहे हैं ? यह तो मेरी प्यारी पत्नी है। इस तरह मेरी जीवित पत्नी को आप मृत क्यों कहते हो ? यदि आपको ज्ञात है कि जो स्त्री मेरे कंधों पर है, वह मृत है, तो Jain Ed international (3) फिर देव ने चक्की में रेत डाली व चक्की पिसने लगा। राम ने उनसे पूछा “बंधु आप क्या कर रहें हैं !" देव ने उत्तर दिया, “मैं रेत पिसकर तेल निकाल रहा हूँ।" तब राम बोले, "आप ऐसा क्यों कर रहें हैं ? क्या असाध्य, कभी प्रयास करने पर भी साध्य हो सकता है ?" यह सुनकर जटायु देव मुसकराकर बोले- “आप तो महाज्ञानी हैं, फिर साक्षात् अज्ञान का चिह्न यह शव अपने स्कंधों पर उठाकर क्यों जा रहे हैं ?" तब लक्ष्मणजी के शव के आलिंगन देकर रामचंद्र बोले "आप ऐसी अमंगल बाते क्यों बोल रहें हैं? आप यहाँसे चले जाइये।" (४) एवं ऋतु के बिना निर्जल समय में मृतबैल को जोत कर खेती का प्रयास करने पर भी वह देव प्रतिबोध करने में निष्फल रहा। 7 आपने अपने स्कंधों पर जिस पुरुष का शरीर रखा है, वह भी मृत है, यह क्यों नहीं समझ सकते ?" रामचंद्रजी गंभीरता से विचार करने लगे, अंतमें उन्होंने इस वास्तविकता का स्वीकार किया कि मेरा अनुज लक्ष्मण अब जीवित नहीं है। तब रामचंद्रजी को आत्मपरिचय करवा कर जटायुदेव व कृतांतवदनदेव पुनः देवलोक लौट गए। रामचंद्रजी ने लक्ष्मणजी का दाहसंस्कार एवं अंत्येष्टि विधिवत् की । DILIP SONI AA
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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