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चंदनजल छिटकने पर जब राम स्वस्थ हुए तब उन्होंने पाया कि सीताजी उनके समीप नहीं हैं। वे उच्च स्वर में बोले, "मेरी सीता कहाँ है ? आप सब मौन क्यों खडे हैं ? क्या आपको अपना जीवन प्रिय नहीं है। कोई मुझे बताएगा कि केशलोच पश्चात् सीताजी कहाँ गई ? अनुज लक्ष्मण ! शीघ्र किसी को भिजवाकर मेरा धनुष्यबाण मंगवाओ। इन मूक मूढों को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है में दुःखी हूँ.. महादुःख के सागर में गोते खा रहा हूँ..
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परिस्थिति की विषमता जानकर लक्ष्मण ने राम को प्रणाम किया और बोले, “भ्राताश्री! आप यह क्या अनर्थ कर रहे हैं ? ये सभी आपके सेवक है.. अपने ही आत्मज समझे जाने वाले इन सेवकों पर तीर चलाना उचित नहीं है। अन्य तर्क यह है कि लोकापवाद से भयभीत होकर न्यायनिष्ठ आपने सीताजी का त्याग किया था, वैसे ही संसारचक्र से भयभीत होकर आत्महित में तत्पर सीताजी ने आपका त्याग किया है। वे तो आपके समक्ष केशलोच कर जयभूषण मुनि के पास विधिपूर्वक दीक्षा लेने गई है। आपको वहाँ जाकर उनकी महिमा एवं अनुमोदना करनी चाहिये। मुनिश्री को अभी अभी केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है। महाव्रतधारी स्वामिनी सीताजी भी उन्हीं के पास गई हैं। आज तक सीताजी विशुद्ध सतीमार्ग पर चल रही थी, अबसे वे साध्वी सीताजी विशुद्धतम मोक्षमार्ग पर चलेगी।”
अनुज लक्ष्मण के इन वचनों को सुनते ही रामचंद्र के मन में जो क्षोभ शेष था, वह शांत हो गया। उन्होंने कहा- "मेरी धर्मपत्नी सती सीता ने केवलज्ञानी जयभूषण मुनिराज से दीक्षा प्राप्त करनेका जो निर्णय किया है, वह यथायोग्य है।” इसके बाद रामचंद्रजी, सपरिवार जयभूषण मुनि के समीप गए। वहाँ यथायोग्य स्थान पर बैठकर उन्होंने शांतिपूर्वक देशना सुनी। देशना के अंत में रामचंद्रजी ने मुनिराज से प्रश्न किया "क्या मैं भव्य आत्मा हूँ... अथवा... अभव्य हूँ ?” केवलज्ञानी मुनिराज ने कहा, “आप भव्य आत्मा हैं... इतना ही नहीं.. आप इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त करेंगे।" राम ने पुनः प्रश्न किया- "सीताजी ने तो मुझे त्यागा है... किंतु में अनुज लक्ष्मण को कैसे त्याग पाऊँगा ?" केवलज्ञानी मुनिराज ने उत्तर दिया “जिस पुण्य के उदय से आप बलदेव बने हैं, वह अभी शेष है। उसके पूर्ण
बिभीषण, सुग्रीव, हनुमान, भामंडल और सीता के पूर्वभव के लिए देखिए Jain Edपरिशिष्ठ लव-कुश के पूर्वभव के लिए देखिए परिशिष्ट नं. ९
होते ही आप दीक्षाग्रहण करेंगे व अवश्य मोक्ष पाएंगे।" फिर बिभीषण ने पृच्छा की कि, “भ्राता रावण किस कर्म के उदय के कारण मारे गये ? मैं, सुग्रीव, हनुमान, भामंडल, सीता, लव-कुश आदि सब राम के प्रति अति अनुरागी क्यों हैं?" इन प्रश्नों के पूर्वभव आधारित उत्तर केवलज्ञानी से सुनकर अनेक आत्माओं के हृदयकमलों में मोक्ष का भाव जागृत हुआ। राम के सेनानी एवं सारथि कृतान्तवदन ने दीक्षा ग्रहण की। राम, लक्ष्मण व समस्त परिवार एवं अन्य राजा श्रद्धापूर्वक साध्वी सीताजी को वंदन कर पुनः अयोध्या लौटे। कृतान्तवदन मुनि, तपश्चर्या कर मरणोपरांत पाँचवें देवलोक में गए। साध्वीजी सीताजी ने साठ वर्ष विविध प्रकार की तपोसाधना की अन्त में तैंतीस दिन अनशन कर मरणोपरांत वे बारहवें देवलोक में अच्युतपति इंद्र बनी ।
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हनुमान की दीक्षा व लक्ष्मण की मृत्यु
PILIC SONT
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