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तब नवयुवा
लव और कुश विचार
करने लगे कि
'लोकप्रवाद से बचने के
लिए अन्य अनेक उपाय
हो सकते थे फिर भी
विद्वान पिताश्री ने ऐसा
घोर अन्याय किया ही
क्यों ?' लव ने नारदजी
से सादर प्रश्न किया,
"मुनिश्रेष्ठ
जहाँ
पिताश्री एवं चाचाश्री का
वह
स्थायी आवास है, अयोध्यानगरी इस स्थान से कितने अंतर
पर है ?" नारदजी ने
कहा, “आप के पिताश्री
का स्थायी आवास
अयोध्या, यहाँ से चौसठ
योजन की दूरीपर है।"
यह सुनते ही लव एवं
कुश ने वज्रजंघ राजा से
कहा, "हमें राम व
लक्ष्मण के दर्शन करने
की तीव्र इच्छा है। क्या
हम ऐसा कर सकते
हैं ?" वज्रसंघ राजा ने
उनका प्रस्ताव स्वीकार
किया। इसके कुछ दिन पश्चात् पृथुराजा ने महोत्सवपूर्वक राजपुत्री कनकमालिका का विवाह कुश के साथ
किया।
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सीताजी को नमस्कार करके लव कुश का प्रस्थान
फिर अनेक देशों पर विजय प्राप्त कर वे पृथु वज्रजंघ, रुष, लंपाक, काल आदि अनेक राजाओं समेत पुंडरीकपुर पधारे। आते ही वे सीताजी के चरणों पर नतमस्तक हुए। सीताजी ने उन्हें वात्सल्यपूर्वक आशीर्वाद दिया "दशरथ पुत्र के समान आप भी पराक्रमी बनें।" लव कुश तुरंत वज्रजंध से कहने लगे "मामाजी आपने हमें पहले अयोध्या जाने की अनुमति प्रदान की थी। लंपाक एवं रुषनरेश को हमारे साथ आने की आज्ञा दीजिए। रणवाद्यों का घोष करवाईये, सैनिकों से कहें कि इतनी भारी संख्या में उपस्थित रहिये कि दिक्कुमारियों के मुख भी
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