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________________ 90 अपने दोनों पुत्र को अध्ययन करवाने के लिए सीताजी ने सिद्धपुत्र श्रावक को पुंडरीकपुरी रुकने का आग्रह किया। कुछ ही समय में दोनों पुत्रों ने सभी विद्या- कला प्राप्त की। उन्होंने जब युवावस्था में पदार्पण किया, तब वज्रजंघ राजा ने अपनी रानी लक्ष्मीवती से प्राप्त, पुत्री शशीचूला एवं अन्य बत्तीस कुमारिकाओं का विवाह लव के साथ करवाया। लव - कुश का पृथु राजा के साथ युद्ध PILIPS पृथिवीपुरनरेश पृथु राजा व अमृतवती रानी की कुक्षि से जन्मी पुत्री कनकमालिका की माँगनी वज्रजंघ राजा ने कुश के लिए की। परंतु पृथुराजा ने कहा कि " जिनके वंश के विषय में ज्ञान नहीं, उन्हें अपनी प्रिय पुत्री कौन सौंप सकता है ?" इस उत्तर से कुपित वज्रजंघराजा ने पृथुराजा के साथ युद्ध किया। पृथुराजा की सेना इतनी पराक्रमी थी कि उनके सामने टिकना वज्रजंघराजा की सेना के लिए जटिल समस्या बनी। अतः वे भागने लगे। तब नवयुवा लव एवं कुश, शत्रुसेना पर इस प्रकार टूट पडे कि पृथुराजा युद्धभूमि से अपनी सेनासहित पलायन करने के लिए विवश हो गए। Jain Education International For Personal & Private Use Only - तब लव-कुश हँसते हुए कहने लगे कि, "अज्ञान वंशीय हम से आप विख्यात वंशीय योद्धा डरकर क्यों पलायन कर रहे हैं ?” पृथुराजा ने कहा, “केवल आपका पराक्रम ही क्षत्रिय कुल की पहचान है। आपके पराक्रम से मुझे इस बात का परिचय हुआ है कि आप उच्च कुलीन क्षत्रिय है। वास्तव में वज्रजंघ ने मेरी पुत्री के लिए सुयोग्य वर का चयन किया था ऐसा पति केवल भाग्यवान कन्या को ही मिलता है। मेरे वर्तन एवं दुर्भाषण के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।” नम्रतापूर्वक यह कहकर पृथुराजा ने कनकमालिका की सगाई कुश के साथ की एवं वज्रजंघ राजा के साथ संधि की। नारदजी का आगमन वज्रजंघराजा पृथुराजा और अन्य राजा छावनी में बैठे थे। अचानक वहाँ नारदजी का आगमन हुआ । वज्रजंघराजा ने उनसे पृच्छा कि यदि उन्हें लवकुश के वंश के विषय में कुछ ज्ञात हो, तो वे उसे अवश्य बताएँ, ताकि पृथुराजा को अपने दामाद के चयन पर संतोष हो सके। नारदजी ने उन्हें प्रथम, सूर्यवंश का संपूर्ण इतिहास सुनाया, उसके पश्चात् राम के शैशव से लेकर निष्कलंक निर्दोष सीता के त्याग तक सारी घटनाएँ सुनाई। www.janglibrary.
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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