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________________ ९ कौन-कौन से जीव कहाँ उत्पन्न होते हैं ? वास्तविक तत्त्व को नहीं जानने वाले कई लोग यह मानते हैं कि मनुष्य में से मनुष्य ही बनता है, जानवर में से जानवर ही बनते हैं । कीड़े मकोड़ो में से कीड़े मकोड़े ही बनते हैं । जैसे गेहूं में से गेहूं बनते __यह उनकी बात ठीक नहीं हैं । क्योंकि मनुष्य में से ही मनुष्य बनते . हो, तो आज कल मनुष्य बढ़ते क्यों जा रहें है ? पहले भारत की आबादी ४० करोड़ थी और अब १०० करोड कैसे हो गई ? विश्व के कोने कोने में मनुष्यों की संख्या क्यों बढ़ रही हैं? इसलिये यह समझना जरुरी है कि जैसे गेहूँ मे से गेहूँ उत्पन्न होते है, वैसे ही गोबर में से बिंछी भी उत्पन्न होते हैं । अर्थात् भिन्न वस्तु में से भिन्न जीव उत्पन्न हो सकते हैं । इसलिये मनुष्य बनने के बाद भयंकर क्रोध वगैरह करने से सर्प, शेर आदि तिर्यंच आदि गति में उत्पन्न होने की कोई आपत्ति नहीं (१) मनुष्य :- पुण्य कर्म करने से मनुष्य गति व देव गति में और पाप कर्म करने से तिर्यंच व नरक गति में उत्पन्न होता है जैसे (१) भगवान महावीर का जीव विश्वभूति मनुष्य पुण्य करके महाशुक्र देवलोक में देव बना । (२) २२ वे भव में पुण्य करने से २३ वें भव में प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती मनुष्य बना । (३) चंड कौशिक तापस मनुष्य पाप करने से मरकर तिर्यंच गति में सर्प बना । (४) महावीर स्वामी का जीव त्रिपृष्ठ वासुदेव पाप करके मर कर ७वीं नरक में गया । (२) देव :- पुण्य करने से मनुष्य गति में व पाप करने से तिर्यंच गति में देव उत्पन्न होता है । जैसे (१) भगवान महावीर स्वामी का जीव महाशुक्र देवलोक का देव त्रिपृष्ठ वासुदेव के रूप में मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुआ । व (२) आठवें देवलोक तक के कई देव पाप करके तिर्यंच में उत्पन्न होते हैं। चित्रमय तत्वज्ञान | ३८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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