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________________ रुस के आधुनिक वैज्ञानिक बेन्केस्टर ने भी कहा है कि पौंधो को भी भाव होते हैं। भगवान महावीर ने ढाई हजार वर्ष पहले और ऋषभदेव भगवान ने असंख्यात वर्ष पहले कहा था कि `वणप्फईया जीवा' ' कितना ऊंचा व सत्य तत्त्व जैन दर्शन में हैं, यह इससे सिद्ध होता है। भगवान महावीर स्वामी के पास लायब्रेरी व लेबोरेटरी नहीं थी, फिर भी ज्ञान के बल से सेंकडों वर्ष पहले वनस्पति में जीव की प्ररूपणा की थी। जिससे हमें यह पहले ही उत्तम तत्त्वज्ञान प्राप्त हुआ है । ऐसा तो नहीं है कि पहले जीव वनस्पति में नहीं था और अब है । वैज्ञानिक तो अभी २०० वर्षों से ही वनस्पति में जीव मान रहे है। जब कि तीर्थंकरो ने असंख्यात वर्षों से पहले प्ररूपणा की थी । अतः भगवान के तत्त्वज्ञान पर अवश्य अद्भुत श्रध्धा सब को होनी चाहिये । वैज्ञानिकों ने वनस्पति में जीव मान भी लिया है । तो भी उसकी हत्या आदि में कोई फर्क नहीं आया है । तीर्थंकर भगवान ने वनस्पति में जीव को समझा कर आठम चौदश आदि को उनके त्याग का उपदेश दिया । इसलिये आज हम उनकी हिंसा से बच रहे हैं । चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International ३७ www.jalnelibrary.org:
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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