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________________ (२) ईशान देव रहते हैं । उन दोनोकी नीचे किल्बीषिक देव रहते हैं । एवं ९वें राज तक (३) सनत्कुमार व उसके नीचे किल्बीषिक देव रहे हैं । (४) महेन्द्रदेव रहते हैं । (५) ब्रह्मलोक के देव रहते हैं । वहां लोकान्तिक देव भी होते हैं । उसके ऊपर १० वें राज तक (६) लान्तक देव रहते हैं, उसके नीचे किल्बीषिक देव रहते हैं | उसके ऊपर (७) महाशुक्रदेव व उसके ऊपर ११वें राज तक (८) सहस्त्रार देव रहते हैं । उसके उपर (९) आनत व (१०) प्राणत के देव बाजु बाजु में रहते हैं और उसके ऊपर (११) आरण व (१२) अच्युत देव बाजु बाजु १२ वें राज तक रहते हैं | उसके ऊपर १३ वें राज तक एक एक के ऊपर क्रमशः नौ ग्रैवेयक रहते हैं। उसके ऊपर १४ वें राज तक क्रमश: पांच अनुत्तर और सिद्ध शिला व सिद्ध है । उसके बाद अलोक है। तत्त्वज्ञानाद् मुक्ति : तत्त्वज्ञान से मोक्ष होता है। लोकसंस्थान का चिन्तन धर्मध्यान है । इसलिये लोक के विभिन्न आकारों को चिन्तन कीजिये चित्रमय तत्वज्ञान ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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