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________________ (२) बालुका जैसा इत्यादि, वहाँ सूर्य वगैरह का प्रकाश नहीं होता । रत्नप्रभा पृथ्वी का विशेष विवरण :(१) रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपरी भाग के १००० योजन छोडकर व नीचे के भाग से १००० योजन छोडकर बीचमें १८०००० - २००० (१००० + १०००) = १७८००० योजन जो पृथ्वी है । उसमें १२ अंतराल व १३ प्रतर हैं । उनमें नरकावास है । कुल ३० लाख नरकावास है | १२ अंतराल में से ऊपर वं नीचे का ओक ओक अंतराल छोडकर बीच के १० अंतराल में १० भवनपति देव क्रमशः रहते हैं । एवं परमाधामी देव भी रहते हैं । वे सभी अधोलोक में कहलाते हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के जो १००० योजन छोडे गये हैं । उसमें से ऊपर के १०० योजन व नीचे के १०० योजन छोड़कर बीच के ८०० योजन के ८ अंतराल में ८ प्रकार के व्यंतरदेव क्रमशः रहते हैं। वे तिर्यग्लोक में ही कहलाते हैं । (३) रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के जो १०० योजन छोड़े गये हैं । उसके ऊपर के १० योजन व नीचे के १० योजन छोड़कर बीच के ८० योजन के ८ अंतराल में ८ वाणव्यंतर रहते हैं । वे भी तिर्यग् लोक में कहलाते हैं। (४) ज्योतिष्कदेव :- रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूतला से ७९० योजन जाने पर तारे, ८०० योजन पर सूर्य, ८८० योजन पर चंद्र, ८८४ योजन पर नक्षत्र, ८८८ योजन पर बुध, ८९१ योजन पर शुक्र, ८९४ योजन पर गुरु, ८९७ योजन पर मंगल, व ९०० योजन पर शनि होते हैं । ये सब तिर्यक्लोक में कहलाते हैं। (३) ऊर्ध्वलोक :- उर्ध्वलोक में वैमानिक देव रहते हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूतल तक नीचे से ७ राज पूरे होते हैं । उसके ऊपर ८ वें राज तक बाजु-बाजु में (१) सौधर्मदेव और |चित्रमय तत्वज्ञान १० Heindeoctilemmintern Penseniwale
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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