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बन्ध के नाम से ४ प्रकार का हैं । (८) आत्मा रूपी सरोवर में इक्कठे हुए कर्म पानी को तप रूपी सूर्य भाप बना कर सूखाता है, वह निर्जरा कहलाती है । (९) ओक दिन सारा कर्म रूपी पानी सूख जाने से स्वच्छ निर्मल ज्ञान दर्शन चारित्र गुण प्रकट होते हैं, वही मोक्ष है । "कृत्स्न कर्मक्षयो मोक्ष'' संपूर्ण कर्मों का क्षय ही मोक्ष है | मुक्त आत्मायें सिद्ध शिला के ऊपर सदा के लिये स्थिर हो जाती है | ऊपर लोक के अंतिम भाग में रुक जाती है । आत्मा का स्वभाव तुम्बडे की तरह ऊपर जाने का है। पहले आत्मा रूपी तुम्बडे पर कर्म रूपी मिट्टी लेपी हुई थी । इसलिये संसार रूपी सागर में नीचे, ऊपर, तिरच्छी अनेक गतियों में परिभ्रमण करती थी । जैसे किसी तुम्बडे पर मिट्टी के थपेडे लगाने से तुम्बडा पानी में नीचे, कभी थोडा ऊपर, फिर थोडा तिरछा , फिर नीचे ऐसे होता रहता है । मगर जब मिट्टी निकल जाती है । तब वह ऊपर आ जाता है । इस तरह आत्मा के ऊपर से कर्म की मिट्टी दूर हो जाती है, तो वह तुम्बडे की तरह अपने स्वभाव से ऊपर आ जाती है | सभी मक्त आत्मायें लोक के अग्रभाग को छुकर एक सम स्थिति में रहती है । क्योंकि अलोक में धर्मास्तिकाय नहीं होने से ऊंचे जाने की शक्ति होने पर भी ऊंची नहीं जाती । उनकी आत्मा अन्तिम २/३ शरीर के भाग में अपने प्रदेशों को संकुचित कर रहती है । ऊपर से सभी एक स्थिति में नीचे से विषम स्थिति में रहती है।
इन नौ तत्त्वों में जीव और अजीव ज्ञेय तत्त्व है । ज्ञेय तत्त्व यानी ये दो तत्त्व जानने चाहिये । पाप, आश्रव व बंध, ये तीन हेय तत्त्व है । हेय तत्त्व यानी इन तीन का त्याग करना चाहिये । पुण्य, संवर, निर्जरा व मोक्ष ये चार उपादेय तत्त्व है | उपादेय तत्त्व यानी इन ४ तत्त्वों पर आदर रख कर यथासंभव कार्यान्वित करना चाहिये।
ज्ञेय को जान कर, हेय को छोड कर, सर्वोत्कृष्ट उपादेय मोक्ष को प्राप्त । करें | जहां से कभी वापस आना नहीं होता, जहां अन्तिम शरीर के २/३ भाग में आत्मप्रदेश अचल व अनन्त अव्याबाध सुख से समृद्ध है, जहां सादि अनन्तकाल तक एक रहना होता है । ऐसे मोक्ष को मैं व आप सभी आत्मा प्राप्त करें । यही शुभेच्छा।
शास्त्रविरुद्ध कोई भी लिखा है, तो मिच्छामि दुक्कडं। चित्रमय तत्वज्ञान
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