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________________ काल्पनिक चित्र से नौ तत्त्व की जानकारी (१) जीव तत्त्व :- जीव एक सरोवर है । (२) अजीव तत्त्व : जीव रूपी सरोवर में जड रूपी कर्म का कचरा भर गया है । कर्म अजीव है । जो पुद्गल द्रव्य का एक विभाग है । अजीव तत्त्व में पुद्गल आदि ५ द्रव्य होते हैं । (३) पुण्य तत्त्व :- उसमें अच्छे रंग वाला पानी पुण्य कर्म है । (४) पाप तत्त्व :- उसमें खराब रंग वाला पानी पाप कर्म है । (५) आश्रव तत्त्व :- दोनों प्रकार का कर्म पानी जिन नालियों (मिथ्यात्त्व, हिंसादि) से आता है, वे आश्रव हैं । (६) संवर तत्त्व :- उन नालियों को बन्द करने वाले सम्यदर्शन, संयम आदि संवर किवाड है । (७) निर्जरा तत्त्व :- कर्म रूपी पानी को तप रूपी सूर्य का ताप लगने से वह भाप बनकर नष्ट होता है । उसे निर्जरा कहते हैं । (८) बन्ध तत्त्व = पुराने कर्म रूपी पानी के साथ नया कर्म रूपी पानी जीव रूपी सरोवर में मिल-घुल जाता है, उसे बन्ध कहते हैं । (९) मोक्ष तत्त्व = सम्पूर्ण कर्म रूपी पानी सूख जाता है, अर्थात् नष्ट हो जाता है । उसे मोक्ष कहते हैं । उपनय :- (१) जीव रूपी सरोवर है । उसमें, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख आदि अनन्तगुण रूपी निर्मल पानी है । (२) अनादिकाल से उसमें कर्म रूपी कचरा भरा हुआ है । (३) इतना ही नहीं, मिथ्यात्व, हिंसा, कषाय अशुभ योग रूपी नाली द्वारा (४) पाप कर्म रूपी खराब (गंदा पानी आ रहा है, एवं शुभयोग आदि से अच्छे (५) पुण्य अच्छे रंग का पानी आ रहा है (६) इन आश्रवों के रोकने वाले सम्यकत्व आदि संवर रूपी किवाड द्वारा पुण्य-पाप रूपी शुभाशुभ पानी आना बंद हो जाता है (७) जीव रूपी सरोवर में कर्मरूपी नया नया पानी भरता ही रहता है, वह कर्मबन्ध कहलाता है । वह प्रकृति, स्थिति, रस, प्रदेश चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only ७५ www.jainelibrary.org
SR No.004222
Book TitleChitramay Tattvagyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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