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________________ कहीं सुनसा न जाए...86 25 कलावती की कलाईयों का छेदन किया गया... कलावती रानी पूर्वभवमें तोते के दोनों पंख को काटकर खुश हई थी, उसकी आलोचना नहीं ली। उसके बाद क्रम से तोते का जीव राजा बना, उसकी रानी कलावती बनी। एक दिन अचानक रानी के हाथ में कंकण (हाथ के आभूषण) पहने हुए देखकर दासीने पूछा कि, "ये कहाँ से आये?" रानी ने जवाब दिया, "जो हमेशा मेरे मनमें रहता है और जिसके मन में सदा मैं रहती है, रात-दिन जिसे मैं भूला नहीं पाती, जिसको देखने से मेरे हर्ष का कोई पार नहीं होता, उसने ये भेजे हैं।" ऐसे वचन गुप्त रीति से सुनकर राजा शंका में पड़ गया कि क्या रानी दुराचारिणी है? जिससे मेरे अलावा किसी दूसरे में उसका मन है, जिसने ये गहने भिजवायें हैं। राजा क्रोध से आगबबूला हो गया और सिपाहियों को कहा कि गर्भवती रानी को जंगल में ले जाओ और कंकण सहित कलाईयों को काटकर ले आओ। सिपाही रानी को जंगल में ले गये। वे कलाईयां काटकर ले आये। रानी ने पुत्र को जन्म दिया कि तुरंत ही महासती के शील के प्रभाव से देव ने दोनो हाथों को ठीक कर दिया और महल बना कर जंगल में मंगल कर दिया। राजा ने कंकण पर जब रानी के भाई जय-विजय के नाम देखे, तब राजा को बहुत अफ़सोस हुआ और किसी भी तरह खोज करवा कर रानी को मान-सन्मान पूर्वक ले आये। केवलज्ञानी भगवान को पूछने पर पूर्वभव में तोते के पंख काटने का यह फल मिला है। यह जानकर पुत्र को राज्य अर्पण कर राजा-रानी दोनों ने संयम ग्रहण किया। फिर २१वें भव में कर्मो का क्षय कर रानी कलावती की आत्मा मोक्ष में गई। पूर्वभव में आलोचना न ली, तो कलाईयां कटवानी पडी। इसलिये आलोचना लेने में किसी भी प्रकार का संकोच नहीं रखना चाहिये। on International www.jainelibrary.org. For Personal & Private
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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