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________________ 3.71...कहीं सुना न जाए बाद में उसने दीक्षा ली। चारित्र जीवन की सुंदर आराधना कर मृत्यु पाकर पांचवे देवलोक में गई। वहाँ से मरकर जनक राजा और विदेहा की पुत्री सीता बनी। रामचन्द्रजी की पत्नी बनने के बाद वनवास के दरमियान जंगल में रावण ने उसका अपहरण किया। भयंकर युद्ध हुआ। रावण की करूण मौत हुई। राम की विजय हुई। फिर राम, लक्ष्मण और सीता को अयोध्या में लोगों ने बड़ी खुशी से प्रवेश करवाया। महान् सती सीताजी पर लोग झूठा दोषारोपण करने लगे कि सीताजी इतने दिन रावण के घर अकेली रही, अतः वह कैसे सती रह सकती है ? रामचन्द्रजी ने कोई परीक्षा किये बिना ही सीताजी को कैसे वापस घर में रख लिया? इन्होंने सूर्यवंश पर काला धब्बा लगाया है। इस प्रकार एक निर्दोष पवित्र आत्मा सीताजी पर झूठा कलंक आया, क्योंकि वेगवती के भव में उन्होंने आलोचना नहीं ली थी। रामचन्द्रजी स्वयं जानते थे कि सीताजी महान् सती है, उसमें तनिक भी दोष नहीं है। फिर भी उन्होंने लोकापवाद के कारण कृतान्तवदन सारथी को बुलाया और तीर्थयात्रा के निमित्त से गर्भवती सीताजी को जंगल में छोड़ने के लिए कहा। कृतान्तवदन जब सिंहनिनाद नामक भयानक जंगल में पहुँचा और वहाँ वह रथ से नीचे उतरा । तब उसका मुख म्लान हो गया। आँखों से श्रावणभाद्रपद बरसने लगा, तब सीताजी ने उससे पूछा कि "आप शोकाकुल क्यों है ?" तब उसने कहा कि "इस पापी पेट के कारण मुझे यह दुर्वचन कहना पड़ रहा है कि आप रथ से उतर जाईये, क्योंकि यह रामचंद्रजी की आज्ञा है कि आपको इस जंगल में निराधार छोडकर मुझे वापस लौटना है।" रावण के यहाँ रहने के कारण लोगों में आपकी निंदा होने लगी है। इसलिए सती होते हुए भी आपको रामचंद्रजी ने लोक-निंदा से बचने हेतु जंगल में छोड़ने के लिए मुझे भेजा है। सीताजी यह सुनते ही मूर्च्छित होकर गिर पड़ी; आँखें बंद हो गई, शरीर भी निश्चेष्ट-सा हो गया, सारथि जोर से रोने लगा। अरे ! मेरे वचन से एक सती की हत्या ? कृतान्तवदन असहाय होकर खड़ा रहा। इतने में जंगल की शीतहवा ने संजीवनी का काम किया । उससे निश्चेष्ट सीताजी होश में आ गई। पश्चात् सीताजी ने सारथि के साथ रामचंद्रजी को संदेश भेजा कि जिस तरह लोगों के कहने से आपने मेरा त्याग किया है, उससे आपका कुछ भी नुकसान नहीं होगा क्योंकि मैं मंदभाग्यवाली हूँ। परंतु उसी प्रकार लोगों के कहने से धर्म का त्याग मत करना। नहीं तो भवोभव बिगड़ जायेंगे। यह सुनकर सारथि की आँखो में आँसू आ गये। उसका ह य गद्गद् हो गया... महासती के सत्य पर धन्य-धन्य पुकार उठा। For Personal & Private Use Only RabriyanUMARODE
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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