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________________ कहीं सुनसा न जाए...44 एक बार वसुभूति मुनि गोचरी के लिये बचकर अन्यत्र चले गए। बंदरी आर्तध्यान में परंतु मुनिश्री के तप के प्रभाव से वह मार न जा रहे थे। कुत्ती की दृष्टि मुनि पर पड़ी। मरकर तालाब में हंसिनी बनी। सकी। जिससे दूसरे अनेक अनुकूल उपसर्ग पूर्वभव के राग के कारण वह मुनि की छाया संयोगवशात् मुनि उस तालाब के करने लगी, परन्तु मुनि अपने व्रत में दृढ़ रहे के समान उनके साथ-साथ चलने लगी। किनारे शीत परिषह सहन करने के लिए और उन्होंने शुभध्यान के प्रताप से हमेशा पनि के साथ कुत्ती को देखकर जहां। काउस्सग्ग कर रहे थे। उन्हें देखकर हंसिनी केवलज्ञान प्राप्त किया। सब लोगों के समक्ष भी मुनि जाते, लोग उनको शुनीपति (कुत्ती अव्यक्त रीति से मधर शब्द व विरह वेदना केवली ने देवी के पूर्वभवों के संबंध का वर्णन पति) मनि कहने लगे। लोगों के ऐसे वचन 67 ला लागा कस वचन की आवाज़ करने लगी और पास में आकर किया। जिससे देवी ने सम्यक्त्व प्राप्त सुनकर पुनि लज्जित होने लगे। एक दिन किया। मुनिश्री पृथ्वी पीठ को पावन करते मुनि किसी भी तरीके से कुत्ती की दृष्टि से स्थिर रहे। हंसिनी की दृष्टि से बचकर मुनि हुये क्रम से मोक्ष सिधाये। बचकर अन्यत्र चले गए। मुनि को न देखने अन्यत्र विहार कर गए। मुनिश्री को न देखने अब इस तरह सोचना चाहिए कि एक पर ती आर्तध्यान से मरकर जंगल में पर हंसिनी व्यंतर निकाय में देवी के रूप में ही घर में केवल खराब दृष्टि रखने से और बन्दरा बनी। उत्पन्न हुई। उसकी आलोचना न लेने से कितना भयंकर पूर्ववत् बन्दरी मुनि को देखकर मुनि म विभंग ज्ञान से स्वयं के साथ मुनिश्री परिणाम हुआ कि तीन-तीन भव तिर्यंचगति के साथ-साथ घूमने लगी। लोग मुनि को का संबंध जान कर वह देवी विचार करने में जन्म लेना पड़ा। इसलिये अगर हम अपने बन्रीपति कहने लगे। जब लोग ऐसा कहते, लगी कि मेरे देवर ने मेरा कहना नहीं माना। जीवन में हुए पापों की शुद्धि नहीं करेंगे, तो तः बन्दरी खुश होती और विषय की चेष्टा अतः मेरी यह दुर्दशा हुई है। अब वह क्रोध से अपनी क्या दशा होगी? अतः आलोचना लेने करती। एक बार मुनि बंदरी की नज़र से आगबबूली होकर मुनि को मारने आयी। में प्रमाद नहीं करना चाहिए। For Personal & Privata. Unes Chiny Jain Education International
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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