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कहीं मुनसान जाए...6
परन्तु उस समय उसे शत्रु मान कर मैंने उसकी पिटाई भी की थी। इन निराधार बन गया हूँ। क्या करूं? इतना ही नहीं। कुलीन घर में रहकर भयकर पाप विचारों और कार्यों से मेरी आत्मा ने कैसे दारुण कर्म बाँधे देवर-भाभी के पवित्र संबंध को भी दूषित बना दिया। अरे ! शरीर के हो? मुझे लगता है कि ऐसे पापों की सजा कदाचित् मेरे इस जीवन में सुख के लिये उच्च कुल के ऊपर काला धब्बा लगा दिया। ओहो ! मैंने ही हो जाएगी, क्योंकि तीव्र भाव से किए हुए पाप उसी भव में फल देते यह क्या किया ? आहारादि वासना में आगे बढ़कर शारीरिक विभूषा है। गुरुदेव, ये पाप उदय में आए, उसके पूर्व आप कृपालु प्रायश्चित और स्वादिष्ट भोजन के पापों से मैं ऐसा दब गया हूँ कि भवांतर में मेरी देकर मुझे शुद्ध बना दीजिए।
धज्जियाँ उड़ जाएगी। ये पाप मुझे याद आते हैं और मैं अपनी आत्मा को धिक्कारता क्या कहूँ गुरुदेव! पापों को धोने के लिए उपाश्रय में भी न गया। हूँ। अरे निर्लज्ज जीव ! तूने यह क्या कर डाला? अरे गुरुदेव! यह अरे! उपाश्रय में जानेवालों को भी भगत कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई। पृथ्वी यदि जगह दे, तो अंदर समा जाऊँ! मैं मुँह बताने लायक भी पर्युषण जैसे महापर्व में भी संवत्सरी के दिन बाहर से उपवास का नहीं हूँ। क्या करूँ गुरुदेव! इन वासनाओं को मैंने ज्ञानगर्भित वैराग्य से दिखावा कर गुप्तरीति से होटल में खाने पर टूट पड़ा। प्रतिक्रमण में समाप्त नहीं की। इन वासनाओं की पूर्ति के लिए मैं हड़ताल, लूट- मज़ाक और ऊधम के सिवाय कुछ भी नहीं किया। उपवास में टाइम पाट वगैरह में आगे बढ़ने लगा।
पास करने के बहाने रात को घूमने निकला। विकार से जलती आँखों लोग मेरे जीवन पर थूकेंगे। शतशः धिक्कार और नफ़रत की
द्वारा कितने पापों का बंध किया होगा? सिनेमा के गीतों से मन को नज़र से देखेंगे। अरर! मेरा क्या होगा? गहराई से ऐसा कोई विचार
वासित करके उसकी धुन में पाप की कितनी लपेटों से आत्मा को लपेट मने नहीं किया। आज मुझे अपने दष्कत्यों पर फट-फट कर रोना दिया होगा? आता है। नौकरी में अफसर का पद मिल गया। इसलिए बोस बनकर दुराचार की दुर्गंध को ढंकनेवाले मेकअप के सुगंधित साधनों का अपने हाथ के नीचे काम करने वाली महिलाओं को भी गैररास्ते पर उपयोग करके शरीर को सुंदर दिखाने का प्रयत्न किया। परन्तु हाय ! चढ़ा दी। प्रलोभन से मेरी आज्ञा में रहे, और वासना के शिकार बनी सब निष्फल गये। मेरे शरीर में रोगों ने अपना कब्जा जमा लिया। मैं रहे, वैसी निःसत्त्व बना दी। मेरा यौवन फूल कुम्हला गया। अब तो मैं दवाओं का शिकार बन गया।
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